अपनी बात

नफा नुकसान की परवाह छोड़ भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने रवीन्द्र राय के हाथों से लॉलीपॉप छीनकर आदित्य साहू को थमाई, पार्टी को समर्थन देनेवाले अधिकांश भूमिहार खफा, पार्टी के खिलाफ कैंपेन चलाने की कर रहे बात

बेचारे रवीन्द्र राय, अब क्या करेंगे? अभी तो झारखण्ड में विधानसभा का कोई चुनाव ही नहीं है और न लोकसभा चुनाव, कि पार्टी उन्हें कोई भाव देगी और उन्हें मनाने के लिए डोरे डालेंगी, आवभगत करेगी, उनके सामने फिल्म हिम्मत का गाना गायेगी – मान जाइये, मान जाइये, बात मेरी दिल की जान जाइये, मान जाइये…।

इसलिए रवीन्द्र राय के पास विकल्प ही क्या है? सिवाय यह लिखने की कि आदित्य साहू जी को भाजपा झारखण्ड के नये कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के लिए मैं श्री आदित्य साहू जी राज्यसभा सांसद को बहुत बधाई देता हूं। उनके सफलता के लिए और यशस्वी होने का कामना करता हूं। केन्द्रीय नेतृत्व के इस निर्णय के लिए केन्द्रीय नेतृत्व को भी धन्यवाद।

अरे भाई, ये प्रदेश भाजपा में कार्यकारी अध्यक्ष पद अचानक क्यों तैयार किया गया था। इसीलिए न, कि कार्यकारी अध्यक्ष पद का लॉलीपॉप रवीन्द्र राय को थमाकर राजधनवार सीट पर भाजपा की जीत सुनिश्चित की जाये, वहां से प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी की जीत सुनिश्चित की जाये, क्योंकि 2024 के हेमन्त-कल्पना लहर में बाबूलाल मरांडी का यहां से जीतना मुश्किल था, अगर वहां से कोई भी व्यक्ति रवीन्द्र राय की जाति का चुनाव लड़ जाता तो बाबूलाल मरांडी की हार तय थी।

रवीन्द्र राय की ही जाति का एक और व्यक्ति निरंजन राय वहां से चुनाव लड़ने का बिगुल फूंका था। उसने उस जगह पर कई अपने ही जाति के लोगों से जमामो माता की मंदिर में कसमें भी खिलवाईं और वो भी बाद में जब भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं का उस पर दबाव आया तो वो खुद पलट गया। वे सारे लोग जो जमामो माता की कसमें खायें थे। जिसका वीडियो आज भी यू-ट्यूब पर मौजूद है। वो सारी कसमें भूलकर भाजपा के प्रत्याशी बाबूलाल मरांडी को जीताने में लग गये। बाबूलाल मरांडी की जीत भी हुई।

अब एक बार फिर भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं ने कलाबाजी दिखाई है। इस कलाबाजी में भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं ने भाजपा के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष पद का लॉलीपॉप रवीन्द्र राय से छीन कर, आदित्य साहू को वो लॉलीपॉप थमा दी है। इस लॉलीपॉप को प्राप्त कर आदित्य साहू के लोग और उनकी जाति के लोग उछल पड़े हैं। जय भाजपा, वाह भाजपा करने लगे हैं।

लेकिन ठीक इसके विपरीत रवीन्द्र राय से यह लॉलीपॉप छीन जाने के बाद झारखण्ड का अधिकांश भूमिहार समाज दुखी है। चाहे वो किसी भी पेशे में क्यों न हो? सभी का ये ही कहना है कि रवीन्द्र राय के साथ ऐसा नहीं होना चाहिए था। लेकिन कोई ये नहीं कह रहा कि आखिर रवीन्द्र राय के साथ ऐसा क्यों नहीं होना चाहिए था?

आखिर ये कार्यकारी अध्यक्ष क्या होता है? जब ऑल इन ऑल प्रदेश अध्यक्ष है ही। दरअसल राजनीति में आप कुछ करे या न करें, पद काफी मायने रखता है और इसी पद पर, पद पर रहनेवाले को बहुत गुमान होता है। ऐसा गुमान की, पद मिल जाने के बाद, वो उसका भी फोन नहीं उठाता, जो संकट के समय, जब वो गर्दिश में था उस समय, उसके साथ रहता था, उसका फोन तक नहीं उठाता। वो उसके फोन को फारवर्ड कॉल में डालकर बैठकर पद के स्वपनलोक में विचरण करने लगता है।

आज जब रवीन्द्र राय से यह कार्यकारी पद रूपी लॉलीपॉप छीन लिया गया, तो उनकी जाति के लोग एक बार फिर उद्वेलित है। जो पत्रकारिता क्षेत्र में हैं, उनके बदन पर तो सांप लोट गया है, कि ये कैसे हो गया। वे झारखण्ड में अपनी जाति का प्रतिशत निकालने में लगे हैं। अपनी जाति के प्रभावित विधानसभा व लोकसभा की गणना करने में लग गये हैं। कई लोग तो रवीन्द्र राय को भाजपा छोड़कर झामुमो में जाने का सलाह दे रहे हैं। जैसे झामुमो में जाते ही, झामुमो वाले लोकसभा या विधानसभा का टिकट इनको थमा देंगे और ये सीधे लोकसभा या विधानसभा में दिखेंगे।

रवीन्द्र राय को जिस प्रकार भाजपा वालों ने दुध में गिरे मक्खी की तरह उन्हें निकाला है। ये इनके साथ होना ही था। क्योंकि इन्होंने भी विधानसभा चुनाव के समय भाजपा के कई शीर्षस्थ नेताओं को नाक रगड़वाया था। आज उन नेताओं ने इन्हें कार्यकारी अध्यक्ष पद से इन्हें उतारकर अपनी नाक ठीक कर ली है। अब रवीन्द्र राय और उनके समर्थक, उनकी जाति के लोग भाव खाते रहें।

रही बात आनेवाले विधानसभा या लोकसभा चुनाव की, तो फिर उस वक्त कोई नये ब्रांड के लॉलीपॉप का इजाद किया जायेगा और फिर इन्हें थमा दिया जायेगा। फिर ये नये लॉलीपॉप लेकर मुस्कुरायेंगे और चुप्पी साध लेंगे। क्योंकि भाजपा के शीर्षस्थ नेताओं ने तो इनकी सारी हैसियत कार्यकारी अध्यक्ष पद के लॉलीपॉप थमाकर जान ली थी।

फिलहाल, कई उनके जाति के लोग उनके सोशल साइट पर खुब उनके पक्ष में क्रांतिकारी कमेन्ट्स किये जा रहे हैं। लेकिन उन क्रांतिकारी कमेन्ट्स की क्या ताकत होती है। वो रवीन्द्र राय खुद ही अपने हरकतों से बता चुके हैं। इधर धुर्वा में रहनेवाले रवीन्द्र राय की जाति के लोग ‘हम कहां हैं’ नामक कैंपेन चलाने की बात करने लगे हैं। चलाइये लोकतंत्र में हर को कैंपेन चलाने का अधिकार है।

लेकिन किसके लिए, उसके लिए जो एक लॉलीपॉप की लालच में अपने हजारों-लाखों समर्थकों के सपनों पर पानी फेर देता है या उसके लिए जो अपने हजारों-लाखों समर्थकों के सपनों को पूरा करने के लिए जान हथेली पर लेकर वो सारे काम करता है, जो जरुरी होता है। रवीन्द्र राय ने अपनी दुर्दशा उसी दिन लिख दी थी। जिस दिन इस व्यक्ति ने हजारों-लाखों लोगों के सपनों पर पानी फेर दिया था और कार्यकारी अध्यक्ष पद का लॉलीपॉप थाम लिया था।

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