लगता है ‘प्रभात खबर’ ने संकल्प ले लिया कि वो अपने सुधी पाठकों का दिमाग खराब करके ही मानेगा
लगता है ‘प्रभात खबर’ ने संकल्प ले लिया कि वो अपने सुधी पाठकों का दिमाग खराब करके ही मानेगा। उनकी धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ करना जारी रखेगा। अपने ‘अध्यात्म/ज्योतिष’ वाले पृष्ठ पर ऐसे-ऐसे लोगों के आर्टिकल छापेगा, जिनको धर्म व ज्योतिष से कोई लेना-देना नहीं, बल्कि लोगों की धार्मिक भावनाओं से खेलना और उटपटांग आलेखों व दृष्टांतों से जो भी सुधी पाठकों के मन के अंदर किसी व्रत को लेकर अच्छी भावना हैं, उसे मटियामेट करके अपनी उटपटांग बातों को उनके मन में स्थापित कर देना है, ताकि उनके अंदर जो भी अपने धर्म के प्रति सच्ची निष्ठा है, उसका सत्यानाश हो जाये।
उदाहरण के लिए रांची से प्रकाशित आज का प्रभात खबर देख लीजिये। आज के प्रभात खबर का पृष्ठ संख्या 10 को देखिये। जो अध्यात्म/ज्योतिष को समर्पित पेज हैं। इसमें जीवित्पुत्रिका व्रत को लेकर दो लोगों के आर्टिकल छपे हैं। एक आर्टिकल डॉ. मयंक मुरारी का है और दूसरा आर्टिकल मार्कण्डेय शारदेय का है। डॉ. मयंक मुरारी के आर्टिकल का हेडिंग है – साधना से संतान सुख की सिद्धि और मार्कण्डेय शारदेय की हेडिंग है – सदा सलामत रहे मेरा लाल और ये दोनों आर्टिकल में बकवास के सिवा और कुछ हैं ही नहीं।
डॉ. मयंक मुरारी ने अपने आर्टिकल में लिखा है कि खर का तात्पर्य है – कठिन तप। जिउतिया का तप कठिन होता है, इस कारण इसे खर जिउतिया कहा जाता है। डॉ मयंक मुरारी द्वारा लिखे इस मूर्खता पूर्ण वाक्यों पर सुप्रसिद्ध विद्वान अयोध्या नाथ मिश्र कहते हैं कि खर का तात्पर्य कठिन तप कभी हो नहीं सकता। खर का मतलब गदहा या दुष्ट या रामायण का एक पात्र जो राक्षस है, उसका नाम खर है। लेकिन जहां तक जीतिया की बात है तो यहां खर का मतलब तृण या तिनका से हैं। जहां इसका भाव यहीं होता है कि इस व्रत में महिलाएं अपने मुख में तृण या तिनका तक लेना पसंद नहीं करती, यहां तक की दांत को धोने के लिए जो दतवन का प्रयोग होता है, उसे भी उस दिन प्रयोग करना उचित नहीं समझती।
सुप्रसिद्ध विद्वान आचार्य मिथिलेश कुमार मिश्र, जो एम. ए., साहित्याचार्य हैं। जो मारवाड़ी+2 उच्च विद्यालय में शिक्षक पद से अवकाश प्राप्त कर चुके हैं। उनका इस संबंध में कहना है कि खर का शाब्दिक अर्थ ही गधा एवं तिनका होता है। ये प्रभात खबर वालों ने खर का तात्पर्य कठिन तप कैसे बता दिया, उनकी समझ से परे हैं। प्रभात खबर की कृपा होगी यदि खर का अर्थ कठिन तप कहां और किस शब्दकोष में उल्लेखित हुआ है, अगर बता दें तो।
पिछले कई वर्षों से जीतिया व्रत कर रही तथा साहित्य में रुचि रखनेवाली कवयित्री राजलक्ष्मी सहाय से जब विद्रोही24 ने इस संबंध में जानकारी चाही, तो उनका भी कहना था कि खर का मतलब कठिन तप नहीं, बल्कि उसका मतलब यहा तिनके से हैं, क्योंकि इस व्रत में महिलाएं तिनका तक अपना मुख में यहां तक की दतवन तक मुंह में लगाना पसन्द नहीं करती और अब दूसरे आर्टिकल पर ध्यान दें। जिसे मार्कण्डेय शारदेय ने लिखा है।
इस आलेख में मार्कण्डेय शारदेय ने लिखा है कि – “महर्षि धौम्य ने द्रौपदी को एक मां की करुण कहानी सुनाते बताया कि सर्पाहारी गरुड़ ने सर्पों के सामने यह शर्त रखी कि नित्य एक को मेरे भोजन के लिए आना होगा। तब समूह के मुखिया के नियम के मुताबिक किसी न किसी परिवार के एक सर्प को नियत स्थान पर जाना पड़ता। गरुड़ उसे खाकर चला जाता। एक दिन एक मां के इकलौते पुत्र की बारी थी। मां की तड़प बढ़ती जाती थी। कभी भीतर-भीतर तो कभी जोर-जोर से रोती – हाहाSग्रे मम वृद्धाया युवापुत्रो विनश्यति। संयोग से जहां की यह घटना थी। वहां दयालु राजा जीमूतवाहन का ससुराल था। उस दिन वह वहीं थे।
जब आधी रात को यह करुण क्रंदन सुना, तो उन्हें सहा नहीं गया। तुरन्त उस मां के पास पहुंच कारण जाना। फिर उसके बेटे को रोक स्वयं गरुड़ के पास भोजन बन चले गये। जब गरुड़ का बगल का मांस खा चुका, तो करवट बदलकर दुसरा भाग परोस दिया। इस पर पक्षिराज को आश्चर्य हुआ, उसने परिचय जानना चाहा, तो उन्होंने बताया कि मेरी मां शैव्या है, पिता शालिवाहन है तथा मैं जीमूतवाहन राजा हूं। मेरा जन्म सूर्यवंश में हुआ है। उनकी दयालुता से प्रसन्न गरुड़ ने उन्हें चंगाकर वर मांगने को कहा, तब उन्होंने यहीं वर मांगा कि अब तक जिन सर्पों को खाया है, उन्हें जिंदा करें, फिर इन्हें कभी न खाएं, सभी माताओं की संतानें चिरंजीवी हो।”
सच्चाई यही है कि जिस प्रकार से मार्कण्डेय शारदेय ने जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा को अपने हिसाब से तोड़-मरोड़कर अपने आर्टिकल में पेश किया। उसका सत्य से कोई लेना देना नहीं हैं। कोई भी व्यक्ति बाजार में बिक रही जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा की किताब खरीद कर पढ़ सकता है और अपना ज्ञान अर्जन कर सकता है। मार्कण्डेय शारदेय ने जो यहां अपनी आर्टिकल में श्लोक लिखे हैं। वो जीवित्पुत्रिका व्रत से ही लिये गये हैं। इसलिए हर किसी को अपना ज्ञान अर्जन करने के लिए बाजार में बिक रही जीवित्पुत्रिका व्रत को लेकर पढ़ना चाहिए और उनके इस आर्टिकल और प्रभात खबर से दूरी बना लेनी चाहिए।
सच्चाई यही है कि जीवित्पुत्रिका व्रत में कहीं यह उल्लेख नहीं है कि गरुड़ महराज सर्पाहारी थे। जीवित्पुत्रिका व्रत में कहीं यह उल्लेख नहीं है कि गरुड़ जी सर्पों के सामने यह शर्त रखी कि नित्य एक को उनके भोजन के लिए आना होगा। जीवित्पुत्रिका व्रत में कहीं यह उल्लेख नहीं है कि गरुड़ जी को सर्पों के समूह के मुखिया ने यह प्रस्ताव दिया था कि उनके पास प्रतिदिन एक सर्प उनके पास खाने को पहुंच जायेगा। जीवित्पुत्रिका व्रत में कहीं यह उल्लेख नहीं हैं कि राजा जीमूतवाहन ने गरुड़जी से यह वर मांगा था कि उन्होंने जिन सर्पों को खाया है, उन्हें जिंदा करें, क्योंकि गरुड़ जी ने सर्पों को खाया ही नहीं था, तो फिर सर्पों को जिन्दा करने का सवाल कहां से आ गया?
सुप्रसिद्ध विद्वान आचार्य मिथिलेश कुमार मिश्र विद्रोही 24 को बताते हैं कि जीवित्पुत्रिका व्रत कथा में स्पष्ट रूप से लिखा है कि – सा चाह गरुडो राजन्! भुंक्ते प्रतिदिन सुतान् अर्थात् बूढ़ी ने कहा कि हे राजन गरुड़ प्रतिदिन आकर गांव के लड़कों को खा जाता है। आचार्य मिथिलेश कुमार मिश्र कहते है कि गरुड़ द्वारा सांप के बच्चों के खाने का उल्लेख पूर्णतः गलत व असत्य है। जीवित्पुत्रिका व्रत में गरुड़ द्वारा बालकों के खाने तथा जीमूतवाहन महराज द्वारा उन मृत बालकों को फिर से पुनर्जीवित करने तथा उन्हें चिरंजीवी करने की चर्चा है।
इधर कई विद्वानों का कहना है कि आजकल हर पर्व पर कुछ न कुछ लिख देने की एक प्रथा चल रही है। जो पूर्णतः गलत है। अच्छा रहेगा कि जिन्हें धर्म और धर्म के गूढ़ रहस्यों के बारे में जानकारी नहीं हैं, वे इससे दूरी बनाये, क्योंकि किसी को यह अधिकार नहीं कि वो अपने उटपटांग बातों से किसी की धार्मिक भावनाओं के साथ खेलें। यह पूर्णतः अधर्म और महापाप है। जो आर्टिकल लिखते हैं और जो अखबार इसे छापते हैं, उन्हें अपने पाठकों से इसके लिए क्षमायाचना करनी चाहिए।