अपनी बात

सुप्रसिद्ध समाजसेवी प्रेम कुमार पोद्दार की 80वीं जयंती के अवसर पर सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा अपने परिवार को भारतीय मूल्यों व परम्पराओं से सीचियें ताकि भारत विश्व को नई दिशा दे सके

राष्ट्र को बचाना है। राष्ट्र को समृद्ध करना है। राष्ट्र को विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में ला खड़ा करना है। राष्ट्र की रक्षा करनी है। तो आपको अपने परिवार को हर हाल में बचाना होगा। उसकी रक्षा करनी होगी। उसमें भारतीय मूल्यों व परम्पराओं को आत्मसात् करवाना होगा। तभी भारत विकसित राष्ट्र बन पायेगा। अन्यथा नहीं, क्योंकि परिवार वो इकाई है, जिस पर पूरा देश टिका होता है। भारत का उदय होना ही, विश्व को एक मार्ग दिखायेगा, इसलिए सबसे पहले अपने परिवार को मूल्यों में रहना सीखाइये। ये बातें आज सुप्रसिद्ध समाजसेवी-उद्योगपति स्वर्गीय प्रेम कुमार पोद्दार की 80वीं जयंती के अवसर पर सुप्रसिद्ध राज्यसभा सदस्य सुधांशु त्रिवेदी ने रांची के सीसीएल सभागार में कही।

उन्होंने अनेक प्रमाण व दृष्टांत दिये। जो भारतीय वांग्मय से जुड़े थे। जो यह बताने के लिए काफी थे कि भारत में एक परिवार का क्या महत्व है? सुधांशु त्रिवेदी ने 1971 में रिलीज हुई ऋषिकेष मुखर्जी की फिल्म आनन्द के उस संवाद ‘बाबू मोशाय जिंदगी लंबी नहीं, बड़ी होनी चाहिए’ को प्रस्तुत करते हुए कहा कि यह संवाद भी भारतीय परंपरा का ही परिचय देती है। जिस भाव को सुप्रसिद्ध समाजसेवी प्रेम कुमार पोद्दार जी ने आत्मसात् करते हुए अपनी जिंदगी जी।

सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि हमारे समाज में सेठ, जो श्रेष्ठ शब्द से ही निकला है। किसे कहा जाता था। उसे नहीं, जिसने धन इकट्ठे किये। बल्कि उसे कहा गया, जिसने धन का सदुपयोग किया। जिसने उक्त धन से धर्मशालाएं, प्याऊं, स्कूल-कॉलेज, वन-उपवन आदि बनाएं। अपने यहां बेंचमार्क वहीं होता था, श्रेष्ठ वहीं होता था, जिसका जीवन समाजोपयोगी कार्यों से जुड़ा था। प्रेम कुमार पोद्दार जी ने आधुनिक जीवन में उसी पुरानी परम्पराओं को प्रतिष्ठित किया। उन्होंने कहा, कि इसीलिए हमारे यहां कहा गया है –

वृक्ष कबहुं नहिं फल भखैं, नदी न संचै नीर।

परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।।

अर्थात् वृक्ष अपना फल स्वयं नहीं खा जाता, नदियां अपना जल स्वयं नहीं संचित करती, ठीक उसी प्रकार जो सज्जन लोग हैं, वो अपना शरीर स्वयं को संतुष्ट करने के लिए नहीं, बल्कि दूसरों को आनन्द देने के लिए धारण करते हैं। ये प्रेरणाएं हमें भारतीय समाज को कहां ले जाती हैं। इस पर ध्यान देने की जरुरत है। उन्होंने एक उदाहरण दिया कि एप्पल कंपनी के मालिक स्टीव जॉब के पास कभी इतने पैसे नहीं थे कि वो भोजन कर सकें, अपने लिए एक किराये का मकान ले सकें। अगर भोजन करते तो उनके पास रहने के लिए पैसे नहीं, रहने की व्यवस्था करते तो भोजन के पैसे नहीं। ऐसे हालात में उन्हें इस्कॉन मंदिर का सहारा मिला। इस्कॉन मंदिर में उन्हें समय पर मुफ्त में भोजन मिल जाता और इस प्रकार वे आगे बढ़े। आखिर ये फ्री में खिलाने की संस्कृति कहां हैं? किस देश में हैं? वो भी बिना किसी भेदभाव के, बिना किसी स्वार्थ के? दरअसल यही भारतीय संस्कृति है।

सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि हमारी संस्कृति यह भी है कि हम किसी का भरण-पोषण या मदद भी करते हैं। तो उसका अभिमान अपने हृदय में नहीं लाते। मतलब विनम्रता रखते हैं। क्योंकि अगर किसी की मदद करने में जहां अभिमान आया, सारे सुंदर कार्यों का फल निष्फल हो जाने का खतरा बना रहता है। हमारे यहां दान प्रकट होता है। लेकिन दक्षिणा गुप्त होती है। सुधांशु त्रिवेदी ने रहीम के दोहे का एक सुंदर दृष्टांत दिया, जो बताता है कि दान कैसी होनी चाहिए। दोहा था –

देनहार कोई और है, भेजत सो दिन रैन।

लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन।।

उन्होंने कहा कि प्रेम कुमार पोद्दार जी ने इसी भाव से जिया, जो प्रेरणास्रोत है। उन्होंने कहा कि भारत के परिवारों की बात करें तो बिना जनजातीय समाज के यह परिपूर्ण ही नहीं हो सकती। हमारे धर्म, धर्मग्रंथ और भगवान इन तीनों में आपको जनजातीय समाज मिलेगा। हमारे धर्मग्रंथों जैसे संहिता, ब्राह्मण, अरण्यक और उपनिषदों में भी आपको जनजातीय समाज मिलेंगे। लेकिन दूसरे देशों के धर्मग्रंथों को उठाकर देख लीजिये। क्या मिलता है?

उन्होंने कहा कि हमारे यहां दो महाकाव्य है। एक रामायण – जहां सात कांडों में एक कांड अरण्य कांड भी है और महाभारत में वन पर्व है। हमारे यहां भगवान जब राम वनवासी बने तब भगवान कहलाए, भगवान कृष्ण अगर गिरिधारी हैं तो बनवारी भी हैं। यानी सिर्फ हमारे ही धर्मग्रंथों में जनजातीय समाज को भी सम्मान मिला है।

उन्होंने कहा कि यही कारण रहा कि स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने शासनकाल में पहली बार जनजातीय समाज के लिए अलग मंत्रालय ही खोल दिया और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनजातीय समाज के गौरव को प्रतिस्थापित करने के लिए जनजातीय गौरव दिवस मनाने के लिए एक दिन की ही घोषणा कर दी।

उन्होंने कहा कि विश्व में भारत देश आज चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। स्टॉक एक्सचेंज में हम तीसरे स्थान, सिविल इरिगेशन में पहले स्थान, मोबाइल हेंडसेट निर्माण में हम दूसरे स्थान पर इसी प्रकार कई क्षेत्र में हम निर्णायक स्थानों पर पहुंचे हैं। पहले लोग हमें कहा करते थे कि भारत टेक्निक के क्षेत्र में हमसे मुकाबला नहीं कर सकता और आज डिजिटल ट्रांजेक्शन में हम एक नंबर पर पहुंच गये। भारत का यूपीआई डिजिटल प्लेटफार्म वीजा को छोड़कर दूनिया का सबसे बड़ा डिजिटल प्लेटफार्म बन चुका है। हाल ही में जापान के एक नेता आये और वे आश्चर्य करने लगे कि भारत डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन में इतनी जल्दी कैसे आगे बढ़ गया?

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि देश अमृतकाल से गुजर रहा है। इसे विकसित राष्ट्र बनायेंगे। ये विकसित राष्ट्र बनकर क्या करेगा, इसका पैमाना क्या होगा, जीडीपी ग्रोथ रेट बढ़ भी जायेगा, तो हम क्या करेंगे? क्या डेनमार्क की तरह हम बनेंगे, जो देश हैप्पीनेस में प्रथम और डिप्रेशन में में दसवीं स्थान पर है। अमेरिका तो डेवलेप कंट्री है। लेकिन वहां होता क्या है? एक बच्चा स्कूल में जाता है और वहां गोलियां चला देता है। हमें ऐसा नहीं बनना। हमें तो अपने भारत और भारतीयता के मूल्य पर भारत को विकसित राष्ट्र बनाना है।

उन्होंने कहा कि कई देशों में सशस्त्र क्रांतियां हुई। लेकिन अपने देश में ऐसा नहीं हुआ, आखिर क्यों? क्योंकि अपने देश का ऐसा कभी कंसेप्ट ही नहीं रहा। जिन देशों में परिवार जैसी संस्था मौजूद नहीं हैं। दरअसल वहीं इस प्रकार का तनाव है। हमारे यहां मां-बाप बच्चों के लिए जीते हैं और बच्चे मां-बाप के लिए। यहां तो कई परिवार में ऐसे बच्चे भी हुए, जिनके माता-पिता नहीं रहे या जिनकी माता-पिता की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं रही, तो उन्होंने परिवार को संभालने के लिए स्वयं के जीवन को उत्सर्ग कर दिया। लता मंगेशकर उन्हीं में से एक का नाम है।

सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि हमारे यहां परिवार में त्याग सिखाया जाता है। किसने कितना त्याग किया? जिसने जितना त्याग किया। वो उतना बड़ा और सम्मान का पात्र। यही त्याग हमें परिवार से मिलता है। जब हमें समाज और राष्ट्र के लिए त्याग करने की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि हमारे यहां धन की आवश्यकता है। हमारे यहां सात पुश्तों तक के लिए धन अर्जन करने की परम्परा है। लेकिन कैसा धन? वैसा धन, जो धर्म के द्वारा अर्जित किया हुआ है। क्योंकि ऐसे ही धन से सुख भी मिलता है। कहा भी गया है – धनाधर्मः ततः सुखम्। उन्होंने कहा कि हमारे यहां एक ही परिवार में सात-आठ पीढ़ियां मिल जायेगी। लेकिन विदेशों में तीन-चार पीढ़ियां जाते-जाते समाप्त हो जाती है। ये वो दुर्गुण हैं जो वहां मिलेगी। लेकिन भारत में यह दुर्गुण देखने को नहीं मिलेगी।

उन्होंने कहा कि भारत में बचत की परम्परा देखने को मिलेगी। लेकिन यही बचत की परम्परा विदेशों में नहीं मिलेंगी। आज भी जो भारतीय विदेशों में रहते हैं। इस गुण को आत्मसात किये हुए हैं और अमेरिका में रहकर एक बेहतर जिंदगी जी रहे हैं। लेकिन अमरीकन इस गुण से वंचित है। उन्होंने कहा कि आज हमें बच्चों पर ध्यान देना होगा। क्योंकि आजकल बच्चों को सुनियोजित तरीके से समझाने व भड़काने का काम चल रहा है। आजकल जो प्रेम-वेम जो चल रहा है। वो प्रेम नहीं, बल्कि भौतिक आकर्षण है। उन्होंने कहा कि जो प्रेम में ब्रेक-अप हो जाये, वो प्रेम कैसे हो सकता है? प्रेम तो सांस के ब्रेक-अप हो जाने के बाद भी चलते रहना चाहिए।

उन्होंने कहा कि आज सभी को सावधान रहने की जरुरत है। रामायण काल में तो रावण साधु का छलावा देकर सीता का हरण किया था। आज स्थितियां बदल गई है। अपनी बेटियों को सावधान करिये। बेटों को भी समझाइयें, कहीं वे प्रेम के चक्कर में घर में शूर्पनखा न ले आए। आप कहियेगा कि इस प्रकार की समस्या का समाधान कहां है? समाधान रामायण में हैं। उलटिये रामायण। क्या कहता है?

प्रातःकाल उठि के रघुनाथा। मातु-पिता गुरु नावहिं माथा।

आपके पास समस्या है। तो सबसे पहले अपनी मां से कहिये। उसके बाद पिता से कहिये। उसके बाद अपने गुरु से कहिये। समस्या का समाधान निकलेगा। क्योंकि परिवार में माता-पिता भरण-पोषण और समस्या का समाधान करते हैं। वे अपने अधिकार की बात नहीं करते। वे स्नेह की वर्षा करते हैं। ड्यूटी की बात नहीं करते। जहां अधिकार की बात होती है, वहां विध्वंस की संभावना रहती है। जब कैकई ने अधिकार की बात कही तो कैसा विध्वंस हुआ। आपलोग जानते हैं। उन्होंने कहा कि विवेक और विनम्रता सीखनी है तो रामायण से सीखिये। उन्होंने फिर कहा कि परिवार एक इकाई है, जितना यह सुदृढ़ होगा। समाज उतना ही मजबूत होगा और जितना समाज मजबूत होगा। राष्ट्र उतना ही समृद्ध और विकसित होगा।

उन्होंने कहा कि बड़े ही सुनियोजित ढंग से भारत के परिवार को तोड़ने की अंतरराष्ट्रीय षडयंत्र चल रही है। आजकल सात-आठ साल का बच्चा टीवी पर मां-बाप को ज्ञान देता है। ये एक साजिश है ताकि आनेवाले समय में पता चले कि भारत के माता-पिता को पूर्व में ज्ञान ही नहीं था। 1994-2003 में भारत की लड़कियों को सौंदर्य प्रतियोगिता में प्रथम स्थान देने का ड्रामा चला। आप खुद सोचिये कि जो पानी की छोटी बोतल दस रुपये में मिलती है। यानी पानी जो मुफ्त में मिलने की चीज है। उसके भी दाम लिये जा रहे हैं। लेकिन यू-ट्यूब, इंस्टाग्राम, गुगुल, फेसबुक आपको फ्री में दिये जा रहे हैं। जरा दिमाग पर जोर डालिये। आखिर क्यों? वो इसलिए ताकि आपके मन-मस्तिष्क उनके कब्जे में चले जाये और आप उनके गुलाम बन जाये। वो जैसे चाहे आपको इस्तेमाल करें तथा अपनी मार्केंटिग कराकर, वे आर्थिक रूप से मालामाल हो जाये और आपको सदा के लिए कंगाल बनाकर रख दें।

उन्होंने कहा कि ये मार्क्स और मैकाले लॉजिक है। जिसे समझना हर भारतीयों को जरुरी है। अगर नहीं समझेंगे तो देश हाथ से निकल जायेगा। इनके हर षडयंत्र को तोड़ना है। लेकिन ये तभी होगा, जब हमारा परिवार सुरक्षित रहेगा। उन्होंने कहा कि अपनी जनसंख्या की ओर भी ध्यान देना जरुरी है। नहीं तो हमारी हाल सिंगापुर, साउथ कोरिया और चीन जैसी हो जायेगी। आज पूरा यूरोप और पश्चिम देश इस संकट से गुजर रहे हैं। देश में आनेवाले संकटों को भी समझिये। जीवन आहूति की प्रेरणा धर्म ही देता है। जब गलवान में चाइना ने भारतीय सैनिकों के साथ मुठभेड़ किया तो हमारे कई सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए और कई घायल हुए। क्या चाइना में कोई घायल नहीं हुआ। दरअसल वे इसलिए अपने यहां इस बात को नहीं बताएं, क्योंकि वहां तुरंत ये बात फैल जाती कि अरे इतने लोग मर गये और सच्चाई यही है कि वहां चीन में अब कोई देश के लिए मरना नहीं चाहता। ये संकट चीन के पास हैं।

उन्होंने कहा कि दुनिया की सारी देशों से उनकी संस्कृति खत्म हो गई। लेकिन भारत में जीवित हैं। क्योंकि यहां अभी परिवार जीवित है। हमलोग विश्व की पुरानी सभ्यता को लेकर आज भी चल रहे हैं। इसलिए भारत का उदय होना ही विश्व को एक नई दिशा दे सकता है। इसलिए परिवार को बचाना है।

राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने इस अवसर पर कहा कि प्रेम कुमार पोद्दार जी का जीवन मूल्यों से भरा था। उन्होंने अपने जीवन को जिस प्रकार जिया और संघर्ष किया। वो प्रेरकक्षण उनकी आँखों के सामने से गुजरा है। उन्होंने कहा कि प्रेम कुमार पोद्दार जी ने कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़कर, उन्हें समृद्ध किया। उन्होंने कहा कि मृत्यु की चुनौती कठिन होती है। वे प्रभात खबर में आया-जाया करते थे। उनका धैर्य उन्हें हमेशा प्रेरित करता रहा। उन्होंने अपने जीवन से बताया कि कठिन परिस्थितियों में भी रहकर कैसै वे उन चीजों को लेकर आगे बढ़ सकते हैं। जिससे परिवार और समाज को नई दिशा मिल सकें। हरिवंश ने इसी दौरान राज्यसभा सदस्य सुधांशु त्रिवेदी के बारे में कहा कि उनके विषय में वे कह सकते है कि –

स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान सर्वत्र पूज्यते।

सभा को रांची के भाजपा सासंद व केन्द्रीय रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ ने भी संबोधित किया और प्रेम कुमार पोद्दार जी के साथ बिताये गये कई पलों को याद करते हुए उन्हें एक महान समाजसेवी बताया तथा लोगों को उनसे प्रेरणा लेने की सलाह दी। स्वागत भाषण राज्यसभा के पूर्व सांसद महेश पोद्दार व धन्यवाद ज्ञापन स्व. प्रेम कुमार पोद्दार के पुत्र पुनीत पोद्दार ने किया। इस कार्यक्रम में समाज के हर वर्गों ने भाग लिया और स्व. प्रेम कुमार पोद्दार को श्रद्धाजंलि अर्पित की।

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