हेमन्त कैबिनेट की सिर्फ एक हरकत ने मृत भाजपा में प्राण फूंक दिये, जनता की नजरों में गिर चुकी भाजपा को पुनः उनके हृदय में बिठा दिया
झारखण्ड के नेता प्रतिपक्ष व राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने अटल बिहारी वाजपेयी का नाम अटल मोहल्ला क्लिनिक से हटाने को लेकर राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन से सोशल साइट के माध्यम से कुछ सवाल पूछे हैं और उनसे सीधे यह पूछ डाला कि उनके इस हरकत को क्या कहा जाये, कृतघ्नता या नैतिक पतन? हालांकि बाबूलाल मरांडी के प्रश्नों का जवाब हेमन्त सोरेन देंगे या नहीं देंगे, ये मुख्यमंत्री जानें।
लेकिन बाबूलाल मरांडी द्वारा उठाये गये सवाल में तो दम है और इस प्रश्न के पक्ष में राज्य की जनता भी दिख रही हैं। भले ही सरकार इसको लेकर ना-नुकुर करता फिरे। राजनीतिक पंडित तो यह भी कहते हैं कि हेमन्त सरकार ने इस प्रकार की हरकत कर राज्य में मृत पड़ी भाजपा और जनता के नजरों से कब की समाप्त हो चुकी भाजपा में प्राण फूंक दिये। अगर भाजपा के नेताओं व कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे को जन-जन तक पहुंचा दिया तो हेमन्त सरकार की जनता की नजरों में किरकिरी होनी तय है।
क्योंकि अटल बिहारी वाजपेयी के प्रति श्रद्धा रखनेवालों की संख्या झारखण्ड में कम नहीं हैं और इसमें हर समुदाय के लोग शामिल हैं। हेमन्त सरकार में शामिल कांग्रेस और राजद के लाख कोसने के बावजूद इस सत्य को कोई नकार भी नहीं सकता। कल हेमन्त की कैबिनेट ने अटल मोहल्ला क्लिनिक का नाम बदलकर संत मदर टेरेसा क्लिनिक कर दिया, जिससे राज्य का एक बहुत बड़ा वर्ग नाराज हो चुका है।
कई लोग तो आज भी खुलकर कह रहे है कि संत मदर टेरेसा की तुलना, अटल बिहारी वाजपेयी से की ही नहीं जा सकती। मदर टेरेसा को संत की उपाधि मिली है, वाजपेयी को नहीं। वाजपेयी भारत रत्न है और मदर टेरेसा भी भारत रत्न है। दोनों का सम्मान होना चाहिए, न कि एक का सम्मान और दूसरे का अपमान कर देना है। जिसने भी इस प्रकार की हरकत की है या सुझाव दिया है। निश्चय ही उसकी मानसिक दिवालियापन ही साबित हो रही है। आइये देखते हैं कि नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने सोशल साइट पर लिखा क्या है? …
“मैं सरकार और माननीय मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन जी से यह प्रश्न पूछना चाहता हूँ कि इसे कृतघ्नता कहा जाए या नैतिक पतन, कि राज्य सरकार ने मोहल्ला क्लिनिक के नाम से अटल बिहारी वाजपेयी जी का नाम हटाने का निर्णय लिया है? झारखंड राज्य के निर्माण में वाजपेयी जी का योगदान किसी परिचय का मोहताज नहीं है। 1999 में अटल जी ने झारखंड के मंच से जनता से वादा किया था कि यदि केंद्र में उनकी सरकार बनी, तो झारखंड के लोगों को एक अलग राज्य का उपहार दिया जाएगा और जैसे ही उनकी सरकार बनी, उन्होंने अपना यह वादा निभाया।
झारखंडवासियों को उनका अधिकार दिलाने में और आदिवासी अस्मिता को अलग पहचान देने में अटल जी के अटल इरादों की निर्णायक भूमिका रही है। लेकिन हेमंत सरकार ने राजनीति के निम्नतम स्तर को छूते हुए उनके योगदान को अनदेखा कर दिया। क्या सरकार यह स्पष्ट कर सकती है कि कैबिनेट के इस निर्णय से स्वास्थ्य व्यवस्था में वास्तविक सुधार होगा? एम्बुलेंस समय पर पहुँचने लगेगी? क्लिनिक में बेहतर इलाज उपलब्ध होगा?
यदि सरकार को वास्तव में मदर टेरेसा का सम्मान करना था, तो उनके नाम पर कोई नई योजना लाती, ऐसी योजना जो मरीज़ों को सहारा और सेवा प्रदान करती, जो स्वयं मदर टेरेसा के जीवन का उद्देश्य था। किन्तु ऐसा न कर सरकार ने यहाँ भी केवल राजनीतिक हित साधने का प्रयास किया है।
राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था इतनी बदहाल है कि गर्भवती महिलाओं को एम्बुलेंस न मिलने के कारण रास्ते में ही प्रसव कराना पड़ रहा है। वृद्ध महिलाओं को खाट पर अस्पताल ले जाया जा रहा है, और शवों को ले जाने तक के लिए एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं है। परन्तु इन बुनियादी समस्याओं को दूर करने के बजाय, सरकार नाम बदलने में व्यस्त है।”