न तो मदर टेरेसा को राजनीति में घसीटने की जरूरत थी और न ही मदर टेरेसा की आत्मा इस प्रकार की हरकतों से प्रसन्न होंगी, क्योंकि कम से कम संत तो ऐसे नहीं होते और न ही उनका ऐसा स्वभाव होता है …
मैं सही कह रहा हूं। आप मानें या न मानें। जो संत होते हैं। उन्हें राजनीति से क्या मतलब? कभी बाबा कुंभन दास ने अकबर के नमूनों को यह कहकर फटकारा था कि ‘मोसो कहा सीकरी सो काम’। लेकिन सवाल उठता है कि इस भाव को समझेगा कौन? वहीं न जो संत की आत्मा के स्वभाव को जानता या पहचानता हो। जो सदैव राजनीति में रहा है, जो सदैव स्व आनन्द और सत्ता सुख में ही अपने जीवन को आच्छादित रखा है। वो संतों के स्वभाव को कैसे समझ सकता है?
जहां तक मेरा मानना है कि न तो मदर टेरेसा को राजनीति में घसीटने की जरुरत थी और न ही मदर टेरेसा की आत्मा इस प्रकार की हरकतों से प्रसन्न होगी, क्योंकि कम से कम संत तो ऐसे नहीं होते और न ही संतों का स्वभाव ऐसा होता है। संत तो कभी चाहेंगे ही नहीं कि उन्हें वो सम्मान प्राप्त हो, जो किसी के नाम को मिटाकर मिलें। अगर झारखण्ड के किसी चर्च में बैठा बिशप या कोई पादरी झारखण्ड सरकार के इस कथन और हरकत को सही ठहराता हैं तो हम इसे उसकी बुद्धि की बलिहारी कहेंगे।
या अगर कोई कांग्रेसी या राजद का नेता इस हरकत की प्रशंसा करता है, तो हम उसकी बुद्धि की भी बलिहारी ही कहेंगे। अरे अटल बिहारी वाजपेयी और मदर टेरेसा की तुलना तो कभी हो ही नहीं सकती। क्योंकि एक विशुद्ध राजनीतिज्ञ हैं तो दूसरा विशुद्ध संत। जिसे 04 सितम्बर 2016 को संत की उपाधि मिली। यह उनके धर्मार्थ कार्यों और गरीबों के प्रति समर्पण के सम्मान में दी गई थी।
अगर मदर टेरेसा को कोई सम्मान ही देना था तो क्या अपने राज्य में योजनाओं की कमी थी या भविष्य में कभी कोई नई योजनाएं इस प्रकार की आयेगी ही नहीं, जिसमें मदर टेरेसा की आत्मा झलकती हो। ऐसा करके तो आपने मदर टेरेसा का अपमान कर दिया। सही मायनों में देखा जाये तो जो मदर टेरेसा को सही मायनों में सम्मान देता होगा, उसे भी यह अच्छा नहीं लगेगा कि किसी के नाम को मिटाकर मदर टेरेसा का नाम उस उल्लेखित कर दिया जाय।
सरकार ने इसके पूर्व भारत के पहले उद्योग मंत्री डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का नाम एक विश्वविद्यालय से मिटा दिया तो लोगों ने इसका प्रतिकार नहीं किया। लोग समझते हैं कि राजनीति में ऐसा चलता है। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी की जगह संत मदर टेरेसा का नाम आ जाना, ये बात कुछ पची नहीं, क्योंकि अटल बिहारी वाजपेयी संत तो नहीं, पर भारत रत्न तो जरुर हैं और हर राजनीतिक दल या सत्ता रुढ़ दल को कम से कम भारत रत्न का तो सम्मान जरुर करना चाहिए और नहीं तो भारत सरकार ऐसा विधेयक लायें, जिसमें भारत रत्न की उपाधि ही सदा के लिए समाप्त कर दी जाये, क्योंकि जब भारत रत्न देते हो और उसका सम्मान नहीं करते, तो फिर ऐसे सम्मान का क्या मतलब?
अटल बिहारी वाजपेयी भले ही भारतीय जनता पार्टी के नेता रहे हो। लेकिन ये भी सच है कि हर दल के नेताओं ने उन्हें सम्मान दिया। उनका 40-45 वर्षों का राजनीतिक जीवन इस बात का गवाह रहा है कि उन्होंने देश की किस प्रकार सेवा की। उनके नाम पर चल रही अटल मोहल्ला की जगह संत मदर टेरेसा का नाम लगा देना, ये तो संत मदर टेरेसा का ही अपमान है। अटल बिहारी वाजपेयी का इसमें क्या जाता है? इसका गंभीर परिणाम तो अब उन्हें अवश्य भुगतना पड़ेगा, जिन्होंने भी इस प्रकार की हरकत की और सरकार को ऐसा गंदा सुझाव दिया।
मैं तो कहूंगा कि ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दें। ये घटना उसी प्रकार की है। जब ईसा मसीह को सूली पर लटकाया जा रहा था और ईसा मसीह ने कहा था कि हे ईश्वर, इन्हें माफ कर दें, क्योंकि ये नहीं जानते कि ये कर क्या रहे हैं। मैं भी कहूंगा कि इस सरकार ने अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर चल रही योजना को मिटाकर, संत मदर टेरेसा का नाम ला, कुछ ऐसा ही कुकृत्य किया है। भगवान इन्हें सद्बुद्धि दें। मरांगबुरु इन्हें सद्बुद्धि दें।