धर्म

दया माता को महावतार बाबाजी ने कहा था कि उनका स्वभाव प्रेम है और प्रेम ही इस दुनिया को बदल सकता हैः स्वामी श्रद्धानन्द

रांची स्थित योगदा सत्संग आश्रम के श्रवणालय में रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए वरीय संन्यासी स्वामी श्रद्धानन्द ने कहा कि महावतार बाबाजी ने जो दयामाता जी से पूर्व में कहा था। वो बातें आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने दया माता जी से उस वक्त कहा, जब दया माता हिमालय की यात्रा पर थी। दयामाता जी से महावतार बाबा जी ने कहा था कि उनका स्वभाव प्रेम है और प्रेम ही इस दुनिया को बदल सकता है।

स्वामी श्रद्धानन्द के कथनानुसार महावतार बाबाजी को खोजने के लिए कही जाने की आवश्यकता नहीं, उन्हें कोई भी भक्त प्रेम की गहराइयों से अपने पास बुला सकता है। स्वामी श्रद्धानन्द का आज का व्याख्यान पूरी तरह से महावतार बाबाजी पर केन्द्रित था। दरअसल आगामी 25 जुलाई को महावतार बाबाजी का स्मृति दिवस है। जिसे योगदा भक्तों का समूह बड़ी ही धूमधाम से मनाता है। इसीलिए स्वामी श्रद्धानन्द आज महावतार बाबाजी के उपर ही खुलकर बोले। जिससे श्रवणालय में उपस्थित योगदा भक्तों का मार्गदर्शन हुआ।

स्वामी श्रद्धानन्द ने कहा कि आखिर महावतार बाबाजी का स्मृति दिवस 25 जुलाई को क्यों मनाया जाता है? वो इसलिए कि इसी दिन 1920 में महावतार बाबाजी ने प्रेमावतार परमहंस योगानन्द जी को दर्शन दिया था। जब वे अपने घर कोलकाता में थे और वहां से अमेरिका जाने की तैयारी में थे। इसी दिन उन्होंने परमहंस योगानन्द जी को दर्शन देते हुए कहा था कि “अपने गुरु की आज्ञा का पालन करो और अमेरिका चले जाओ। डरो मत, तुम्हारा पूर्ण संरक्षण किया जायेगा।”

महावतार बाबाजी ने परमहंस योगानन्द जी को यह भी कहा था “तुम ही वह हो, जिसमें मैंने पाश्चात्य जगत में क्रिया योग का प्रसार करने के लिए चुना है। बहुत वर्ष पहले मैं तुम्हारे गुरु युक्तेश्वर से एक कुम्भ मेले में मिला था और तभी मैंने कह दिया था कि मैं तुम्हें उनके पास शिक्षा ग्रहण के लिए भेज दूंगा।”

स्वामी श्रद्धानन्द ने अनेक दृष्टांत दिये और महावतार बाबाजी के जीवन से जुड़ी कई घटनाओं को योगदा भक्तों के बीच में रखा। उन्होंने कहा कि महावतार बाबाजी ही हैं। जिन्होंने पहली बार क्रिया योग की दीक्षा आभासी स्वर्ण महल में लाहिड़ी महाशय को दी थी। उसके बाद लाहिड़ी महाशय से यह युक्तेश्वर गिरि जी को प्राप्त हुई और उसके बाद परमहंस योगानन्द जी को प्राप्त हुई यह वैज्ञानिक विधि आज पूरे संसार में व्याप्त होती चली जा रही है। लोग इससे लाभान्वित हो रहे हैं और ईश्वर से एकाकार हो रहे हैं।

स्वामी श्रद्धानन्द ने बताया महावतार बाबाजी हिमालय पर्वत पर अपने शिष्यों के साथ एक जगह से दूसरे जगह आते-जाते रहते हैं। इस दौरान उनके साथ शिष्य भी रहते हैं। जब तक उनका जहां रहना होता है, रहते हैं और फिर जब वहां से चलना होता है तो वे कहते हैं कि डेरा डंडा उठाओ। वे अपने साथ एक डंडा भी रखते हैं। वे अदृश्य होकर भी एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर जाते हैं और कभी-कभी पैदल ही एक शिखर से दूसरी शिखर की ओर चल देते हैं।

स्वामी श्रद्धानन्द ने महावतार बाबा और लाहिड़ी महाशय से जुड़ी दो कथाएं सुनाई। पहली कहानी मुरादाबाद की थी। जब वे एक बंगाली परिवार के यहां ठहरे थे और उनसे छह मित्र मिलने आये थे। जहां आध्यात्मिक विषयों पर चर्चाएं चल रही थी। जिसमें किसी ने कहा कि अभी भारत संतों से विहीन हो गया है। जिस पर लाहिड़ी महाशय ने कहा कि ऐसा नहीं हैं। अभी भी इस देश में महान संत विद्यमान हैं और इसी क्रम में लाहिड़ी महाशय ने अपने दोस्तों को अपनी बात सही सिद्ध करने के क्रम में महावतार बाबाजी को बुला लिया। जिस पर महावतार बाबाजी नाराज भी हुए और लाहिड़ी महाशय को कहा कि अब जब-जब तुम बुलाओगे तो मैं नहीं आउंगा, लेकिन जहां मेरी आवश्यकता होगी। मैं अवश्य पहुंच जाउँगा।

स्वामी श्रद्धानन्द ने लाहिड़ी महाशय और महावतार बाबाजी की कुम्भ मेला वाली प्रसंग भी सुनाई जब लाहिड़ी महाशय के अंदर किसी की आलोचना का भाव जग गया था। महावतार बाबाजी ने आलोचना का भाव उनके अंदर समाप्त हो। एक लीला रच दी। लाहिड़ी महाशय ने देखा कि महावतार बाबाजी एक सामान्य संन्यासी का पांव पखाड़ रहे हैं और उसके खाने पकाने के बर्तन मांजने की भी बात कर रहे हैं। लाहिड़ी महाशय को यह बात समझते देर नहीं लगी कि महावतार बाबाजी उन्हें सद्गुण की सीख दे रहे हैं और बता रहे हैं कि जीवन में विनम्रता का कितना स्थान है।

स्वामी श्रद्धानन्द ने योगदा भक्तों को कहा कि महावतार बाबाजी क्या थे, कैसे थे और किस कोटि के आध्यात्मिक पुरुष थे। वो इसी बात से पता चल जाता है कि लाहिड़ी महाशय कहा करते थे कि “जब भी कोई श्रद्धा के साथ बाबाजी का नाम लेता है, उसे तत्क्षण आध्यात्मिक आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है।”

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