धर्म

मानव जाति को ईश्वर द्वारा दिया गया आशीर्वाद हैं क्रिया योग, इसके द्वारा कोई भी व्यक्ति ईश्वर के साथ एकाकार हो सकता हैः स्वामी चैतन्यानन्द

11वें अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर रांची के योगदा सत्संग आश्रम के श्रवणालय में योग को लेकर आयोजित विशेष सभा को संबोधित करते हुए वरिष्ठ संन्यासी स्वामी चैतन्यानन्द गिरि ने कहा मानव जाति को ईश्वर द्वारा दिया गया आशीर्वाद हैं क्रिया योग, इसके द्वारा कोई भी व्यक्ति बहुत ही कम समय में ईश्वर के साथ स्वयं को एकाकार कर सकता है। इसमें किसी को  कोई भी संदेह नहीं होना चाहिये।

स्वामी चैतन्यानन्द गिरि ने कहा कि क्रिया योग के द्वारा ही मनुष्य स्वयं के आत्मस्वरूप को भली भांति जान सकता है। उन्होंने कहा कि कि आत्मा का सही स्वरूप क्या है? लोग नहीं जानते। दरअसल आत्मा का सच्चा स्वरूप नित्य आनन्द है। क्रिया योग एक प्राचीन प्रविधि है, जो प्राणशक्ति के साथ मिलकर कार्य करती है। इस योग के निरन्तर अभ्यास से व्यक्ति स्वयं को ईश्वर के साथ हो लेता है।

उन्होंने कहा कि हमारे मेरुदण्ड में दिव्य चेतनाओं के कई चक्र हैं। प्राणशक्ति इसी मेरुदण्ड में ऊर्जा को प्रवाहित करता है। जिससे मेरुदण्ड में रहनेवाली चक्र जागृत होती है। यह क्रिया योग द्वारा ही संभव है। जैसे ही क्रिया योग का व्यक्ति निरन्तर अभ्यास करता है, वो आनन्द का अनुभव करने लगता है, क्योंकि निरन्तर अभ्यास से उसकी आत्मोन्नति होने लगती है। उसका ईश्वर से संबंध प्रगाढ़ होता चला जाता है।

उन्होंने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को ईश्वर के साथ कभी न कभी एकाकार होना ही है। एक सामान्य व्यक्ति कितना भी बेहतर ढंग से जीवन जीये, भोगरहित जीवन जीये, उसके बावजूद भी एक व्यक्ति को ईश्वर से एकाकार होने में कई जन्मों के भंवरजाल में पड़ने के बाद भी दस लाख वर्ष लग जाते हैं। लेकिन क्रिया योग एक ऐसी प्राचीन प्रविधि हैं, जिससे व्यक्ति बड़े कम समय में ही निरन्तर अभ्यास से ईश्वर के साथ एकाकार हो जाता है।

स्वामी चैतन्यानन्द गिरि ने कहा कि क्रिया योग प्राचीन आध्यात्मिक विज्ञान है। जिसे श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया। बाद में पतंजलि द्वारा प्रस्फुटित हुआ। फिर कई वर्षों तक विलुप्त होने के बाद 1861 ईस्वी में महावतार बाबाजी ने लाहिड़ी महाशय को दिया और फिर वहां से गुरु परम्परा के द्वारा होता हुआ परमहंस योगानन्द जी को 1920 में प्राप्त हुआ।

उन्होंने कहा कि क्रिया योग से सिर्फ हमारा ही भला नहीं होता, बल्कि इससे संपूर्ण मानव जाति व विश्व का भला होता है। क्रिया योग से लाभ ही लाभ है। इससे शरीर के अंदर गहन शांति का अनुभव होता है। भावनात्मक शक्ति जागृत होती है। चिन्ता और भय से मुक्ति मिलती है। अंतर्ज्ञान जागृत होता है। हृदय करुणा और प्रेम से भर जाता है।

उन्होंने कहा कि कुछ बुरे संस्कार ऐसे होते हैं, जो पूर्व जन्मों से चले आ रहे होते हैं। उस पर विजय पाना क्रिया योग द्वारा ही संभव है। इससे हमारी चेतना उच्चतम अवस्था में पहुंच जाती है। इसके द्वारा हम अपनी समस्याओं का बेहतर ढंग से समाधान भी कर सकते हैं। उन्होंने इसी संदर्भ में एक दृष्टांत सुनाया।

उन्होंने कहा कि एक बार कोलकाता में एक ऐसे व्यक्ति परमहंस योगानन्द जी से मिले, जो बड़ी ही क्रोध किया करते थे। क्रोध भी ऐसा कि जहां वे नौकरी करते, वहां के बॉस पर भी हाथ छोड़ने से वे गुरेज नहीं किया करते। एक बार यही व्यक्ति परमहंस योगानन्द जी से मिले और अपने क्रोध पर वे कैसे काबू पाये? उसका निदान पूछा। परमहंस योगानन्द जी ने उन्हें क्रिया योग का अभ्यास करने को कहा और कुछ मानस दर्शन भी बताएं।

देखते ही देखते, वे व्यक्ति क्रोध करना भूल गये और परमहंस योगानन्द जी के पास जाकर कहा कि उनके द्वारा बताये गये क्रिया योग से उन्हें बहुत ही लाभ हुआ और अब उन्हें क्रोध नहीं होता। परमहंस योगानन्द जी ने उक्त व्यक्ति की परीक्षा लेनी चाही और कुछ बच्चों को उनका क्रोध बढ़ाने के लिए कुछ करने को कहा। बच्चे बार-बार क्रोध भड़के, ऐसी हरकत करने लगे। उसके बावजूद भी उक्त व्यक्ति को क्रोध नहीं आया। परमहंस योगानन्द जी की परीक्षा में वो व्यक्ति उतीर्ण हुआ। उस पर क्रिया योग ने अच्छी असर डाली थी।

इसी प्रकार स्वामी चैतन्यानन्द गिरि ने लाहिड़ी महाशय और वृंदा भगत डाकिया की कहानी सुनाई कि कैसे क्रिया योग के कारण एक साधारण डाकिया, असाधारण व्यक्तित्व का धनी बन चुका था। उन्होंने कहा कि क्रिया योग का अभ्यास कोई जटिल नहीं, बल्कि अत्यंत सरल है। ये तो आपके उपर निर्भर करता है कि आप उसे कैसे स्वयं को उसमें समाहित कर रहे हैं।

स्वामी चैतन्यानन्द गिरि ने कहा कि परमहंस योगानन्द जी कहा करते थे कि क्रिया योग ईश्वर-साक्षात्कार की सबसे तीव्र और सबसे सरल मार्गों में से एक है। यह दिव्यता व आनन्द की अद्भुत अनुभूति प्रदान करता है। योगानन्द कहा करते थे कि क्रिया का एक आधा मिनट का अभ्यास प्राकृतिक आध्यात्मिक विकास के एक वर्ष के बराबर होता है।

स्वामी चैतन्यानन्द गिरि ने इस दौरान श्वास प्रविधियां, प्रतिज्ञापन और मानस दर्शन से भी लोगों को परिचय कराया। जिसका आनन्द श्रवणालय में उपस्थित सभी लोगों ने लिया। स्वामी चैतन्यानन्द गिरि के इस विशेष सत्र का लाभ योगदा के देशव्यापी आश्रमों, केन्द्रों और मंडलियों में वाईएसएस यूट्यूब चैनलों के माध्यम से हजारों योगदा भक्तों ने लिया।

इसके पूर्व योगदा सत्संग से जुड़े ब्रह्मचारियों द्वारा भजन की ऐसी गंगा बही कि वहां उपस्थित सभी लोगों ने खूब गोता लगाया और स्वयं को धन्य किया। जय गुरु, जय मां, जय जय मां…, सीताराम, सीताराम, सीताराम कहिये, जाही विधि राखे राम, ताहि विधि रहिये…, श्रीकृष्ण चैतन्य, प्रभु नित्यानन्द, हरे कृष्ण, हरे राम, श्रीराधे गोविन्द… प्रमुख भजन रहे, जिसकी भक्ति गंगा में सभी ने स्वयं को लाभान्वित किया।

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