धर्म

भोजन करने, कोई विशेष कार्य करने तथा ईश्वर के प्रति भक्ति-प्रेम निवेदित करने के समय आप जितना मौन व शांत रहेंगे, उतना ही आनन्द में रहेंगेः स्वामी निर्मलानन्द

रांची स्थित योगदा सत्संग आश्रम के श्रवणालय में आयोजित रविवारीय सत्संग के दौरान योगदा भक्तों को संबोधित करते हुए स्वामी निर्मलानन्द ने कहा कि आप भोजन करने, कोई विशेष कार्य करने तथा ईश्वर के प्रति भक्ति-प्रेम निवेदित करने के समय जितना मौन व शांत रहेंगे, उतना ही आनन्द में रहेंगे। इसमें कोई किन्तु-परन्तु नहीं।

स्वामी निर्मलानन्द ने कहा कि व्यक्तिगत व आत्मकल्याण के लिए मौन का बहुत बड़ा महत्व है। वे रविवारीय सत्संग में मौन की महत्ता और उससे होनेवाले लाभ से योगदा भक्तों को परिचय करा रहे थे। नाना प्रकार की घटनाओं और दृष्टांत द्वारा उन्होंने योगदा भक्तों को मौन के गूढ़ रहस्यों से पर्दा भी उठाया।

उन्होंने कहा कि आप एक शोरगुल की दुनिया में रहे और उसके बाद एक शांत वातावरण में समय बिताएं। आपको खुद पता चल जायेगा कि शोरगुल की दुनिया और प्रकृति के शांत वातावरण में रहने में क्या अतंर है? शोरगुल हमारे तंत्रिका तंत्र पर गहरा असर डालता है और यह हमारे जीवन को इस कदर प्रभावित करता है कि व्यक्ति स्वयं को असहज महसूस करता है। इसके विपरीत शांत वातावरण और मौन, व्यक्ति को सहज बनाने में मदद करता है।

स्वामी निर्मलानन्द ने कहा कि बेकार की बातों में आज जितना उलझेंगे। उतना ही आप असहज और अशांत होंगे और जैसे ही बेकार की बातों की जगह मौन रहना पसंद करेंगे। आप को खुद पता चल जायेगा कि मौन रहना कितना श्रेयस्कर होता है। उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी भी मौन रहने को बेहतर मानते थे और समय-समय पर एक पूरे दिन व मौन रहने में बिताते थे। दरअसल सच्चाई है कि बेकार की बातों से व्यक्ति मन की शांति को खो देता है। मतलब साफ है कि हम जितना मौन व शांत रहेंगे। उतना आनन्द में रहेंगे।

उन्होंने कहा कि जब भी भोजन करें तो शांतचित्त होकर करें। मौन होकर करें। कोई भी काम करें तो उसमें भी मन को शांत रखें, मौन होकर अपने कामों को गति दें। ईश्वर की ओर अपने मन को लगाने की जब कोशिश करें तो उसमें भी मौन व शांतचित्त रहे। इससे आप पायेंगे कि आप जो भोजन कर रहे हैं, वो शरीर को उचित पोषण दे रहा है। जो काम कर रहे हैं, उसमें सफलता मिल रही है। ईश्वरीय प्रेम की ओर बढ़ रहे हैं तो ईश्वर से आपकी निकटता में भी तेजी आ रही है।

उन्होंने यह भी कहा कि जो गहराई से ध्यान करते हैं। वे सर्वाधिक स्वयं को शांत महसूस करते हैं। वे मौन भी रहते हैं। उनका मौन रहना, उन्हें ईश्वरीय प्रेम की ओर ले जाता है। इसलिए प्रत्येक को मौन रहने के महत्व को जानना चाहिए तथा मौन रहने की प्रवृत्ति को अपनाना चाहिए।

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