अपनी बात

अब लीजिये, भारत के कुछ टूच्चे पत्रकारों और चिरकुट टाइप्ड राजनीतिज्ञों को इस बात के लिए पेट में दर्द हो रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सर्वदलीय बैठक में भाग क्यों नहीं ले रहे?

अब लीजिये, भारत के कुछ टूच्चे पत्रकारों और चिरकुट टाइप्ड राजनीतिज्ञों को इस बात के लिए पेट में दर्द हो रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सर्वदलीय बैठक में भाग क्यों नहीं ले रहे? मतलब इन्हें कुछ भी बोलना है। किसी भी मुद्दे को लेकर पीएम मोदी को घेरना है, चाहे वो कितना भी अच्छा काम क्यों न करें, चाहे वो पाकिस्तान को आतंक के मुद्दे पर धूल ही क्यों न चटा दें।

चाहे सारा विश्व या विश्व की मीडिया या विश्व के बड़े-बड़े मूर्धन्य नेता पीएम मोदी के पहलगाम की घटना के बाद उनके द्वारा लिये गये ठोस निर्णय पर उनके साथ ही क्यों न हो? लेकिन भारत की मोदी विरोधी मीडिया, टूच्चे पत्रकार और चिरकुट टाइप्ड के नेता कुछ ऐसी सवाल जरुर खड़ी करेंगे, जिसे देखकर एक सामान्य व्यक्ति भी समझ जायेगा, कि ऐसे नेताओं और पत्रकारों के दिमाग में फिलहाल चल क्या रहा है?

आम तौर पर जब देश पर संकट आता है, तो जिम्मेदार मीडिया या जिम्मेदार नेता सरकार पर सवाल नहीं उठाते और न सरकार के क्रियाकलापों पर छीटाकशीं करते हैं। वे अपनी ओर से सरकार का हर प्रकार से समर्थन करते हैं। लेकिन हमारे देश में ऐसा अब नहीं हैं। हां, पूर्व में ऐसी स्थिति जरुर थी। हमें याद हैं कि 1971 की युद्ध की स्थिति में, उस वक्त के विपक्ष के प्रमुख नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने इंदिरा सरकार को पूर्ण सहयोग दिया था, न कि उस दौरान उन्होंने उन पर सवाल उठाये। कहा भी गया है कि –“विपत्काले विस्मय एव कापुरुषलक्षणम्।”

यही नहीं पीवी नरसिम्हा राव के शासनकाल में जब भारत आर्थिक संकट से गुजर रहा था तो उस आर्थिक संकट से कैसे भारत को निकाला जाय, इस मुद्दे पर नरसिम्हाराव की सरकार ने अटल बिहारी वाजपेयी से सहयोग मांगी थी और वाजपेयी जी ने सहयोग दिया भी।

याद करिये, जब पाकिस्तान में बेनजीर भुट्टो की सरकार थी और वहां नेता प्रतिपक्ष नवाज शरीफ थे। तब भारत के एक कांग्रेसी प्रधानमंत्री ने अटल बिहारी वाजपेयी को ही कश्मीर मुद्दे पर भारत का पक्ष रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ मुख्यालय को भेजा था। जिसकी सराहना भारत ही नहीं, बल्कि विश्व के सभी देशों ने की थी और उस वक्त अटल बिहारी वाजपेयी को जमकर सराहना भी मिली। कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान बुरी तरह हारा।

लेकिन आज क्या है? पहलगाम की आतंकी घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। इस घटना के बाद भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संकल्प लिया कि वो आतंकियों को ऐसी सजा देंगे, जो उनकी कल्पना से परे होगा और आज पाकिस्तानियों को उनके घर में घुसकर जब उन्हें कल्पना से परे सजा दी जा रही हैं। भारत के द्वारा जो भी कार्रवाई हो रही हैं। उसे राजनीतिक दलों/विभिन्न मीडिया हाउसों को बुलाकर बताया जा रहा है। पीएम मोदी अपने ढंग से देश को विश्वास में लेकर अपने कार्यों को गति दे रहे हैं। विश्व के नेताओं से संवाद कर रहे हैं। ऐसे में भारत के टूच्चे पत्रकारों और चिरकुट राजनीतिज्ञों के छाती पर सांप क्यों लोट रहे हैं?

अब ऐसे में क्या, पीएम मोदी आतंक के पुरोधा पाकिस्तान को जवाब दें। विश्व के नेताओं से सम्पर्क कर भारत की जनता के सम्मान को बढ़ाएं या टूच्चे टाइप्ड पत्रकारों और चिरकुट टाइप्ड राजनीतिज्ञों के बेकार के सवालों के पचड़ें में पड़कर अपना दिमाग खराब करें। देखने में आ रहा है कि जिन पत्रकारों/राजनीतिज्ञों की औकात नहीं कि एक सामान्य व्यक्ति के सवालों को जवाब, वो दे सके, वो पीएम मोदी के उपर सोशल साइट के माध्यम से सवाल उठा रहा है और उसके मंदबुद्धि दोस्त उसके समर्थन में उसकी जय-जयकार कर रहे हैं। आखिर ये उसकी बुद्धि की बलिहारी नहीं तो और क्या हैं?

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