हेमन्त मेहरबान तो झारखण्ड में कांग्रेस पहलवान
एक लोकोक्ति है – अल्लाह मेहरबान तो गदहा पहलवान। यह लोकोक्ति झारखण्ड में हेमन्त सोरेन और कांग्रेस पर खूब फिट बैठती हैं। इन कांग्रेसियों की औकात अपने बलबूते पर एक भी लोकसभा सीट जीतने की नहीं हैं, पर ये भोकाली इतना करेंगे कि जैसे लगता है कि झारखण्ड में आसमान इन्हीं लोगों ने उठा रखा है। झारखण्ड में जो सरकार चल रही हैं, इन्हीं कांग्रेसियों की वजह से चल रही हैं। लेकिन सच्चाई यही हैं कि इन कांग्रेसियों ने सरकार का बेड़ा गर्क कर रखा है। जिसकी वजह से विधानसभा से लेकर सड़कों तक सरकार की जमकर फजीहत हो रही है।
अब जरा देखिये, इन कांग्रेसियों ने रांची में आज संविधान बचाओ रैली का आयोजन किया था। उस संविधान का, जिस संविधान की सबसे ज्यादा धज्जियां अगर किसी ने उड़ाई तो ये कांग्रेसी ही थे। जरा इनसे पूछिये, इंदिरा गांधी के शासनकाल में जब आंध्र प्रदेश में दो-तिहाई बहुमत के साथ एनटी रामाराव का शासन चल रहा था, उस शासन को सत्ता से बाहर करने का काम किसने किया था? ठीक उसी समय जम्मू-कश्मीर में फारुक अब्दुल्ला का शासन चल रहा था, उस फारुक अब्दुल्ला को शासन से बाहर किसने किया था?
वो कौन पार्टी थी, जो भारतीय संविधान में 78 से भी ज्यादा बार संविधान संशोधन कर चुकी थी? वो कौन पार्टी है, जिसने शाहबानो के पक्ष में आये सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उलटकर रख दिया और कट्टरपंथियों के आगे झूकते हुए संविधान संशोधन तक कर डाले? वो कौन पार्टी थी, जिसमे सर्वाधिक 356 धारा का उल्लंघन करते हुए विभिन्न राज्यों में राष्ट्रपति शासन तक कर डाले?
वो कौन ऐसी पार्टी थी, जिसने 1975 में आपातकाल लगवाकर संविधान की ऐसी की तैसी कर दी? आखिर ये कांग्रेस के लोग भारत की जनता को इतना मूर्ख क्यों समझते हैं? भारत की जनता खूब समझती हैं, इसलिए तो 2014 के बाद से इन्हें सत्ता से बाहर रखने का फैसला कर लिया और आज जो कूदते-फांदते संसद में 99 सीटें इन्होंने लाई हैं। वो इनके पुरुषार्थ से नहीं, बल्कि क्षेत्रीय दलों की कृपा से इन्हें प्राप्त हुई हैं।
क्या इस देश की जनता ने मनमोहन सिंह के रूप में एक असहाय व कमजोर प्रधानमंत्री नहीं देखा, जिसकी इज्जत न तो सोनिया गांधी ने की और न राहुल गांधी ने। क्या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा 2013 में जारी अध्यादेश को फाड़ते हुए राहुल गांधी को भारत की जनता ने नहीं देखा, क्या इस प्रकार की घटना से संविधान मजबूत हो रहा था?
जब मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे। तो विदेश से आनेवाले राष्ट्राध्यक्षों से पहली मुलाकात सोनिया गांधी किस हैसियत से करती थी? क्या कोई बता सकता है? और अब झारखण्ड को ही देख लीजिये। कांग्रेस पार्टी के लोगों ने केशव महतो कमलेश को प्रदेश अध्यक्ष बनाया हैं। क्या केशव महतो कमलेश इस स्थिति में हैं कि पार्टी को एक विधानसभा सीट अपनी हैसियत से जीतवा कर दिलवा दें या खुद ही झारखण्ड के किसी भी विधानसभा सीट से जीतकर झारखण्ड विधानसभा में पहुंच जाये?
सच्चाई यह है कि कांग्रेस को अगर दलबदलूओं का साथ नहीं मिले, तो कांग्रेस का झारखण्ड में नाम लेनेवाला कोई नहीं रहे। क्या ये सही नहीं है कि प्रदीप यादव, राधाकृष्ण किशोर जैसे नेता जो दूसरे दलों से उनके पार्टी में गये और इन दलबदलूओं को इन्होंने अपने माथे पर ऐसा चढ़ाया कि एक को संसदीय कार्य मंत्री बना दिया और दूसरे को नेता विधायक दल घोषित कर दिया। जबकि जो पुराने कांग्रेसी थे, जिन्होंने कभी दलबदल नहीं की, पार्टी के प्रति निष्ठावान रहे। उन्हें हाशिये पर लाकर खड़ा कर दिया। जिसमें एक का नाम तो हर दल वाला शान से लेता है, जिन्होंने भारत रत्न लाल कृष्ण आडवाणी को रथयात्रा के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर मसानजोर तक भिजवाया था। नाम है – रामेश्वर उरांव।
एक नेता तो कांग्रेस का ऐसा है कि जीवन भर लोकनायक जय प्रकाश का झोला ढोया। जय प्रकाश जी का ही आशीर्वाद लगा तो चंद्रशेखर के शासनकाल में गृह मंत्री तक बन गया और फिर बाद में सत्ता सुख प्राप्त करने के लिए कांग्रेस की चाकरी पकड़ ली। कांग्रेस में तो ऐसे ही लोगों की बल्ले-बल्ले रही हैं। यहां भी खूब इसने मस्ती की। कई मंत्री पद संभाले और अब अपनी बेटी को रांची से लोकसभा की सीट पर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ाने में सफल रहा, हालांकि उसका सपना राज्य की जनता ने उस वक्त चकनाचूर कर दिया। जब भाजपा के टिकट पर संजय सेठ फिर से चुनाव जीतने में सफल रहे।
राजनीतिक पंडितों की मानें, तो झारखण्ड में कांग्रेस के पास फिलहाल कोई ऐसा नेता नहीं हैं, जो राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के समकक्ष तो दूर, उनसे बात करने के लायक भी हो। लेकिन मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की राजनीतिक उदारता रही हैं कि वे सभी को बराबर सम्मान देते हैं। वे तो उसका भी सम्मान करते हैं, जो उनका कई बार अपमान कर चुके हैं। जो उन्हें कभी मझधार में छोड़कर दूसरे दलों में गये हैं। उन्हें भी बाद में अपने यहां वहीं सम्मान दिया, जिस सम्मान के वे लायक थे। ऐसे हैं -हेमन्त सोरेन।
यही कारण है कि राज्य की जनता आज भी हेमन्त सोरेन पर उतना ही विश्वास करती है, जितना की 2019 में करती थी। कोरोना काल में उनके द्वारा जो राज्य की जनता का सेवा किया गया। वो तो एक रिकार्ड हैं, जो देश के किसी भी मुख्यमंत्री के पास नहीं हैं। जब भी कोरोना का कालखंड याद किया जायेगा। मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का नाम शीर्ष पर चला जायेगा।
कुल मिलाकर अब हम यही कहेंगे कि कांग्रेसियों को चाहिए कि वे ज्यादा कूदे-फांदे नहीं, उनके चाल-चरित्र को राज्य की जनता जानती है। उन्हें जीतना चाहिए, वो उन्हें मिल जाया करेगा। बेकार की रैलियों के चक्कर में न पड़े और न ही संविधान-संविधान चिल्लाएं, क्योंकि सर्वाधिक संविधान की दुर्दशा अगर किसी पार्टी ने की हैं तो वो उन्हीं की पार्टी है। भाजपा तो इसमें कही दिखती ही नहीं। आपके अल-बल बकने से क्या हो जायेगा?