रांची के चुटिया में श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ एवं पंचकुंडीय महायज्ञ संपन्न

रचना है तो रचनाकार है और वो आधार परब्रह्म हैं। जितने भी संसार में अणु हैं और जो एक दूसरे को आकर्षित करते हैं, वे कृष्ण के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं। श्रीमद्भागवत कहता है कि श्रीकृष्ण आनन्द को ही कहते है। वहीं एकमात्र सच्चिदानन्द स्वरुप हैं। श्रीकृष्ण ही आकर्षण के केन्द्र है। संसार में कोई भी व्यक्ति हो या वस्तु, सभी को प्रेम और आनन्द चाहिए। प्रेम राधा है तो श्रीकृष्ण आनन्द।

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भक्त हो तो सुदामा और मित्र हो तो भगवान श्रीकृष्ण जैसा, जो अपने मित्रों पर सारा ऐश्वर्य लुटा दे

रांची के चुटिया अयोध्यापुरी स्थित वृंदावनधाम में श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के सातवें दिन महाराष्ट्र से पधारे भागवताचार्य संत श्रीमणीषभाई जी महाराज ने कहा कि प्रत्येक भगवान के भक्त को सुदामा की तरह बनना चाहिए, और प्रत्येक मित्र को भगवान श्रीकृष्ण जैसा होना चाहिए, जो अपने मित्र पर सारा ऐश्वर्य लुटा दें। पूरे संसार में आज तक भगवानश्रीकृष्ण और सुदामा जैसी मित्रता कही देखने को नहीं मिलती।

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भाव, गति, विवेक और तत्व का सम्मिश्रण हैं श्रीमद्भागवत, इसमें डूबकी लगाइये, ईश्वर को प्राप्त करिये

रांची के चुटिया अयोध्यापुरी स्थित वृंदावनधाम में आज दूसरे दिन भागवत कथा का आनन्द लेने बड़ी संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए महाराष्ट्र से पधारे भागवताचार्य संत श्रीमणिष भाईजी महाराज ने कहा कि दरअसल भागवत भाव, गति, विवेक और तत्व का सम्मिश्रण है, जो भागवत में डूबकी लगायेगा, उसे भाव, गति, विवेक और तत्व चारों प्राप्त होंगे और जब ये चारों प्राप्त होंगे तो फिर उस व्यक्ति को ईश्वर प्राप्ति से कोई रोक भी नहीं सकता।

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