अखबारों-चैनलों के मालिकों/संपादकों के कारनामों का असर, झारखण्ड में श्मशान की ओर चल पड़ी पत्रकारिता

नेता, पत्रकार और अधिकारियों के भ्रष्टाचार में संलिप्त होने का प्रभाव देखिये, झारखण्ड में श्मशान की ओर पत्रकारिता चल पड़ी है। चित्ता सज चुकी है। बस अर्थी से उसे उठाकर चित्ता पर रख देना है, फिर कोई भी उसमें आग लगा दें, क्या फर्क पड़ता है, चित्ता तो चित्ता हैं, धू-धू कर जल पड़ेगी। जब मैं बड़े-बड़े शिक्षण संस्थाओं में पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे युवाओं/युवतियों व वहां पत्रकारिता का कोर्स करा रहे मगरमच्छों को देखता हूं तो सोचता हूं कि ये मगरमच्छ कौन सी शिक्षा इन्हें दे रहे होंगे और वे युवा ले रहे होंगे?

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अगर करीमन, मियां न होकर दलित हिन्दू होता और कोई ब्राह्मण उसके शव को श्मशान में जलने नहीं देता, तो क्या होता?

अगर करीमन मियां, मियां न होकर दलित हिन्दू होता और कोई ब्राह्मण उसके शव को श्मशान में जलने नहीं देता, तो फिर क्या होता? निश्चय ही उस वक्त पूरे देश में आग लग जाती, पूरे ब्राह्मण समुदाय को लोग हिला कर रख देते, एनडीटीवी ही नहीं बल्कि पूरे चैनलों में ये खबर सुर्खियों में होती, कई सप्ताह तक इस पर विशेष चर्चाएं होती, अखबार वाले उस ब्राह्मण का जीना मुहाल कर देते, संबंधित थाने में प्राथमिकी दर्ज होती, और वह ब्राह्मण जेल की सलाखों में होता।

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रघुवर सरकार का कारनामा – धनबाद प्रशासन ने एक गरीब के शव को कचड़े वाहन से ढुलवा दिया

सवाल राज्य सरकार से, सवाल धनबाद प्रशासन से, सवाल धनबाद के भाजपा सांसद और भाजपा विधायक से, सवाल धनबाद के नगर निगम प्रशासक से भी और सवाल धनबाद के कट्टर भाजपा समर्थक मेयर से भी, कि वे ये बतायें कि क्या किसी का शव ऐसे ढोया जाता है? जैसा कि धनबाद में एक गरीब महिला के शव को ढोया गया।

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स्मार्ट सिटी बनवानेवाली रघुवर सरकार के पास न दवा है न एंबुलेंस

जो सरकार बच्चों को एक रुपये की दवा तक न उपलब्ध करा सकें, उसे सत्ता में रहने का क्या अधिकार है? जी हां, ये हालात है झारखण्ड के। यहां की सरकार बड़े-बड़े दावे करती है, स्मार्ट सिटी बनाने की बात करती है, अपनी ब्रांडिग के लिए करोड़ों खर्च कर रही हैं, पर दुसरी ओर हमारे नौनिहालों को एक रुपये तक की दवा उपलब्ध कराने में ये सरकार असमर्थ है। आज गुमला में एक ऐसी घटना घटी है, जो हृदय को चीर देनेवाला है।

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