बाबूलाल मरांडी का बयान – अगर लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को हिलाने की कोशिश हुई तो भाजपा चुपचाप हाथ पर हाथ धरे बैठी नहीं रहेगी

झारखण्ड के पुलिस मुख्यालय द्वारा सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग (आईपीआरडी) को आगे कर पत्रकारों पर नकेल कसने के जो प्रयास

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फ़ोन टेपिंग से जुड़ा पेगासस की फर्जी कहानी, देश को गुमराह करने की सुनियोजित साजिश – बाबूलाल

भाजपा नेता विधायक दल एवम राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने कांग्रेस सहित यूपीए गठबंधन पर आज कड़ा प्रहार

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अखबारों-चैनलों के मालिकों/संपादकों के कारनामों का असर, झारखण्ड में श्मशान की ओर चल पड़ी पत्रकारिता

नेता, पत्रकार और अधिकारियों के भ्रष्टाचार में संलिप्त होने का प्रभाव देखिये, झारखण्ड में श्मशान की ओर पत्रकारिता चल पड़ी है। चित्ता सज चुकी है। बस अर्थी से उसे उठाकर चित्ता पर रख देना है, फिर कोई भी उसमें आग लगा दें, क्या फर्क पड़ता है, चित्ता तो चित्ता हैं, धू-धू कर जल पड़ेगी। जब मैं बड़े-बड़े शिक्षण संस्थाओं में पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे युवाओं/युवतियों व वहां पत्रकारिता का कोर्स करा रहे मगरमच्छों को देखता हूं तो सोचता हूं कि ये मगरमच्छ कौन सी शिक्षा इन्हें दे रहे होंगे और वे युवा ले रहे होंगे?

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प्रदेश भाजपा में लोकतंत्र पूरी तरह समाप्त, बिदकने लगे भाजपा कार्यकर्ता, अब तक कार्यसमिति का गठन तक नहीं

भारतीय जनता पार्टी में एक तरह से देखा जाय, तो लोकतंत्र पूरी तरह से समाप्त हो चुका है। यह पार्टी पूरी तरह से कांग्रेसी विचारधारा को अपनाकर, स्वयं को जीवित रखने का प्रयास कर रही है। जिसका परिणाम यह देखने को मिल रहा है कि जिस भाजपा में कार्यकर्ताओं की फौज हुआ करती थी, अब उस भाजपा से कार्यकर्ता खुद को अलग करने लगे हैं। कमाल है, भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष  कौन होगा?

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हैप्पी बर्थडे CM हेमन्त, तुम जियो हजारों साल, साल के दिन हो पचास हजार

झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का आज जन्मदिन है। आज उनके जन्मदिन के अवसर पर बधाई देनेवालों का तांता लगा हुआ है। क्या सत्तापक्ष और क्या विपक्ष सभी ने उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएं दी है। लोकतंत्र की यही खुबसुरती है कि हम भले ही किसी का वैचारिक तौर पर विरोध करें, पर जब कुछ विशेष दिन आये तो हम उन्हें इसके लिए शुभकामनाएं दें, न कि हर बात पर बाल का खाल निकालने लगे।

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PM मोदी ने दुमका और बरहेट में चुनावी सभा कर इस बात की स्वयं पोल खोलकर रख दी कि भाजपा हेमन्त से फिलहाल कितनी डरी हुई है

ऐसे तो लोकतंत्र में कोई भी कही भी जाकर चुनाव प्रचार कर सकता है और अपनी पार्टी के पक्ष में जनता से वोट की अपील कर सकता है, पर राजनीति में भी एक मर्यादा होती है, और लोग आम तौर पर उस मर्यादा को निभाते भी है। पूरा झारखण्ड ही नहीं, बल्कि जो झारखण्ड की राजनीति में दिलचस्पी रखते हैं, उन्हें भी पता है कि सत्ता के प्रबल दावेदार एवं भावी मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन दो सीटों दुमका और बरहेट से चुनाव लड़ रहे है,

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जिन मीडिया हाउस को कल CM ‘रघुवर’ में खुदा नजर आता था, अब उनके सपने में ‘हेमन्त’ आने लगे

कमाल की बात है, ये मीडिया हाउस में बैठे लोग भी न, जनता व नेताओं को कितना बेवकूफ समझते हैं, जरा देखिये न कल तक जिन मीडिया हाउसों को सीएम रघुवर में खुदा नजर आता था, अब उनके सपने में हेमन्त सोरेन आने लगे हैं। जो कल तक मुख्यमंत्री रघुवर दास के सचिव सुनील कुमार बर्णवाल के साथ सेल्फी लेकर स्वयं को धन्य महसूस करते थे, फेसबुक में डाला करते थे,

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झारखण्ड में लोकतंत्र के लिए खतरा बनकर उभर रहे हैं रांची के अखबार और चैनल, विपक्ष परेशान

जब से मीडिया में सरकार का दखल बढ़ा है, मीडिया के मालिक और कथित संपादकों ने सत्ता के आगे अपना मस्तक झूकाने व उनके चरणोदक हृदय से ग्रहण करने का कार्य प्रारम्भ किया है, देश में लोकतंत्र खतरे में पड़ गया है, इसे सभी को स्वीकार करना होगा। पूर्व में चुनाव के समय पेड न्यूज चला करते थे। अब तो झारखण्ड में आसन्न विधानसभा चुनाव को देखते हुए अभी से ही पेड न्यूज का कार्यक्रम चल पड़ा है।

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अपने हक की बात कर रहे 16 निर्दोष मुस्लिमों पर प्रशासन ने लगाया सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने का झूठा आरोप, FIR दर्ज

लीजिये, अब आप अपने हक की बात भी मत करिये, जबकि लोकतंत्र में चुनाव अपने हक की बात के लिए लड़ने की बात करता है, आज जिधर देखिये, उधर ही विभिन्न जातीय संगठन, सामाजिक संगठन, धार्मिक संगठन अपनी-अपनी मांगों को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों से गुहार लगा रहे हैं, उन पर दबाव बना रहे हैं, ताकि उनकी मांगे मानी जाये,

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सुबोधकांत का दावा जल-जंगल-जमीन का मुद्दा किसी राजनीतिक दल ने नहीं जनसंगठनों ने ही जिंदा रखा

रांची के एचआरडीसी में जन घोषणा पत्र पर विमर्श के लिए आयोजित एकदिवसीय सेमिनार को संबोधित करते हुए कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता सुबोधकांत सहाय ने कहा कि जल-जंगल-ज़मीन का मुद्दा सामाजिक संगठनों ने ही जिंदा रखा है। सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन के प्रस्ताव को जन-संगठनों के लड़ाई के कारण ही सरकार को वापस लेना पड़ा। 

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