आप माने या न माने, सूरत कोर्ट के एक फैसले ने राहुल गांधी की नींव जरुर हिला दी, पर यह फैसला भाजपाइयों के लिए भी भविष्य में खतरे के संकेत जरुर दे दिये

आखिर 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान कर्नाटक के कोलार में राहुल गांधी द्वारा दिया गया वक्तव्य कि “चोरों का

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वो मोदी है, वो सत्ता को ठोकर मार सकता है, पर स्वयं द्वारा लिए गए किसी भी निर्णय को वापस नहीं ले सकता

बिहार में एक लोकोक्ति है – अक्ल बड़ा या भैंस, तो जो मूर्ख होते हैं, वे अपनी बुद्धि के अनुसार बोल देते है कि –भैंस, क्योंकि उन्हें काला भैंस ही अक्ल के सामने बड़ा दिखाई पड़ता है। ये मूर्ख भैस को बड़ा दिखाने में एक से एक तर्क भी देते हैं, कहते है कि भैंस दूध देती है, जिसे पीकर हम बलवान होते है, गोबर देती है, जो बहुत उपयोगी होती है, इसलिए अक्ल से बड़ी तो भैंस है। ठीक उसी प्रकार आज कुछ लोगों से पूछिये

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गांठ बांध लीजिये, बिहार की जनता के मन-मस्तिष्क में चल रहे उथल-पुथल को टटोल पाना आसां नहीं, नामुमकिन हैं

बिहार की जनता ने जनादेश दे दिया है। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को अगले पांच साल के लिए फिर से सत्ता मिली है, जबकि महागठबंधन को फिर से विपक्ष में रहकर सरकार के काम-काज पर नजर रखने की जिम्मेदारी भी डाल दी गई है, हालांकि महागठबंधन अभी भी इस हार को पचाने को तैयार नहीं है, उसे लगता है कि इवीएम तथा प्रशासनिक अधिकारियों ने महागठबंधन की जीत में खलनायक की भूमिका अदाकर दी है, इधर भाजपा के लोग कुछ ज्यादा ही प्रसन्न है, क्योंकि बिहार में पहली बार भाजपा ने इतनी अधिक सीटें जीती है।

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कश्मीर के नाम पर चल रहा प्रोपेगैंडा वॉर और वर्तमान भारतीय परिदृश्य पर छलकता एक पत्रकार का दर्द

मैंने सबसे पूछा लेकिन आपलोग एक भी नाम किसी अखबार का नहीं दे पाए जो मेरे लेख छाप सके। इसलिए अब यहीं दे रहा हूँ, पढ़िए और बताइए इसका छापना ज़रूरी है या नहीं। – यह दर्द हैं एक पत्रकार को जो छलक आया है, यह दर्द ऐसे ही नहीं हैं, दर्द का उभरना बताता कि भारतीय पत्रकारिता जगत् में कितना और किस प्रकार का अवमूल्यन हुआ हैं? ज्ञानेन्द्र नाथ सिन्हा उर्फ गुंजन सिन्हा पत्रकारिता जगत् में एक जाना-माना नाम हैं,

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हरियाणा-महाराष्ट्र चुनाव परिणाम के बाद भाजपा का दामन थामे दलबदलूओं के मुंह लटके, बढ़ी धड़कन

झारखण्ड के दागियों व दलबदलूओं की नींद उड़ी हुई हैं, साथ ही दिल की धड़कनें भी बढ़ गई हैं, उन्हें लगता था कि दल, बदल देने से उनकी अपने इलाकों में जीत की संभावना शत प्रतिशत बढ़ गई हैं, उनका आगे का राजनीतिक जीवन सुरक्षित हो गया हैं, पर नेता प्रतिपक्ष हेमन्त सोरेन की मानें तो इन सारे दलबदलूओं-दागियों ने सही मायनों में राजनीतिक आत्महत्या कर ली हैं,

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भाजपा अगर चोर, डकैत, बदमाश को भी टिकट दे दें, तो आप उसे मोदी-शाह को हृदय में रख जीता दें

मिलिये भाजपा के इस नमूने सांसद से, सुनिये क्या कह रहा हैं… भाजपा किसी को भी जैसे लूल्हा को, लंगड़ा को, काना को, चोर को, डकैत को, बदमाश को टिकट दे दें, आप उसे जीताइये, मोदी और शाह को विश्वास में रखकर जिताइये… ये हैं आज की भाजपा और उसका आज का चरित्र। यह हैं वह भारतीय जनता पार्टी जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की राजनीतिक इकाई मानी जाती हैं।

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ए भाई, इ CM HOUSE वाला भूतवा कहां गया, सदा के लिए शांत हो गया या दूसरी जगह प्रस्थान कर गया?

आज सुबह-सुबह करीब चार बजे मेरी नींद टूटी, नींद टूटने के पूर्व, मैं सपने में था, करीब तीन-चार भूत मेरे सपने में आकर, गंभीर बातें कर रहे थे। सपने में, मैं भी वहां मौजूद था, कभी वे खूब हंसते तो कभी गंभीर मुद्रा में आ जाते, जब भूतों की नजर मेरे उपर पड़ी, तो उन्होंने कहा कि क्या जी पत्रकार महोदय, आप भी आ गये यहां, आ गये तो बैठिये, और देखिये यहां क्या हो रहा है, क्योंकि अंत में समाचार संकलन कर जन-जन तक पहुंचाना, तो आपको ही हैं न।

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कल मोदी और आज प्रियंका के लिए भांड की तरह बिछ गये भारतीय चैनल्स, जबकि प्रियंका ने घास तक नहीं डाले

पहले मैं भी सोचता था कि न्यूज़ चैनल्स भाजपा के सामने बिछ गए हैं। लेकिन मैं गलत था। भाजपा ने कितना ही पुरातनपंथी, पूँजी समर्थक, लेकिन एक मॉडल मंदिर और साम्प्रदायिकता में लपेट कर बेचा, इन महोदया प्रियंका गांधी के पास बेचने को क्या है? उनके पास ऐसा कौन सा मॉडल/स्टेटमेंट है जो सारे चैनल बिना कोई सवाल उठाए, उनकी लखनऊ यात्रा पर भांडों की तरह बिछे जा रहे हैं? किसी ने चैनल्स को प्रियंका के लिए खरीदा नहीं है,

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धन्य रांची का रिम्स कॉटेज धाम। जहां लालू करते विश्राम।।

भाई जय हो लालू भगवान की। माई समीकरण के जन्मदाता की। सामाजिक न्याय के मसीहा की। स्वपरिवार के लिए अपने पार्टी तक को दांव पर लगा देनेवाले की। चाहे जो हो जाये पर, बीजेपी और मोदी को उनके औकात दिखानेवाले की। चाहे पार्टी का जनाधार मिट्टी में ही क्यों न मिल जाये, फिर भी सर्वणों का मरते दम तक विरोध करनेवाले की। महागठबंधन बनाकर, मोदी के अश्वमेध घोड़े को रोकने के लिए सब कुछ दांव पर लगानेवाले की।

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एक राजनीतिक खूंटे में बंधकर फेंक न्यूज के सहारे अपना भविष्य सुरक्षित करनेवाले पत्रकारों से देश को बचाइये

जब पत्रकार भाजपाई, कांग्रेसी, वामपंथी, बसपाई या अंबेडकरवादी हो जाये, तो समझ लीजिये उससे सर्वाधिक खतरा देश को है, क्योंकि फिर वह जनता के सामने सत्य नहीं परोस पाता, फिर वह उस पशु के समान हो जाता है, जिसके सामने उसका मालिक समय-समय पर रोटी के टूकड़े फेंकता रहता है और वह पशु इसके बदले अपने मालिक को देख संवेदनशीलता दिखाते हुए पूंछ हिलाता रहता है।

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