बाल मंडली की दुर्गापूजा यानी दुर्गापाठ और मानसपाठ के माध्यम से अध्यात्म की ओर प्रथम प्रवेश

भाई वो हमलोगों का जमाना था, जब टमटम की जगह छोटी-छोटी टैक्सियां ले रही थी, बैलगाड़ियों की जगह करीब-करीब ट्रैक्टर और ट्रक ने ले लिए थे। खेतों से रेहट, लाठा-कुड़ी, नहरों से करींग एक तरह से गायब होने के कगार पर थे, और उनकी जगह पर पम्पिंग सेट ने ले लिये थे। उस वक्त न तो किसी के घर में टीवी था और न ही मोबाइल फोन, ले-देकर हमारे मुहल्ले में दो ही के घर में फोन थे, एक नन्दा साव और दूसरे राजेन्द्र प्रसाद के पास।

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सतुआनी यानी बचपन में “टुइयां” खरीदने और  “नाच बगइचां” जाने की जिद करने का दिन

पटना से 12 किलोमीटर की दूरी पर है – दानापुर कैंट। दानापुर कैंट से करीब तीन से चार किलोमीटर दूर पर है – नासिरीगंज। ऐसे यह नासिरीगंज, दानापुर कैंट और गांधी मैदान पटना मार्ग पर पड़ता हैं। इसी नासिरीगंज इलाके करीब 40 वर्ष पूर्व तक एक बहुत बड़ा खुला खेत हुआ करता था, जिसे लोग “नाच बगइचां” कहा करते थे। ये “नाच बगइचां” कैसे नाम पड़ा? मैं नहीं जानता और न ही किसी बाग-बगइचां को नाचते देखा, पर चूंकि नाम था – “नाच बगइचां”

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