खबरें प्रभात खबर की, पढ़े दैनिक भास्कर में, सीपी-प्रदीप भिड़े, किया अपशब्दों का प्रयोग
कमाल है, कोई अखबार ये कैसे सोच लेता है कि उसके घर में घटना घटेगी और दूसरों को पता ही नहीं चलेगा। वह यह क्यों सोचता है? कि इस इंटरनेट युग में समाचारों को कोई पचा लेगा, अच्छा तो ये रहता कि वह इस समाचार को भी उसी प्रकार से प्रमुखता देता और जनता को निर्णय करने का अधिकार देता कि कौन सहीं है और कौन गलत? पर जब अखबार खुद ही न्यायाधीश बन जाये, तो इसमें कौन क्या कर सकता है?
Read more