अरे वो तो अपना पंकज था, वो आखिरी call और सपना (पार्ट-2)
रांची के पत्रकार पंकज टीएमएच की सीसीयू में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे थे और मेरा मन यही कह रहा था – कि काश पत्रकार पंकज ठीक हो जाए। कौन नहीं लगा हुआ था उसके लिए। अप्रैल का महीना, कोरोना पीक पर जा रहा था, मेरे पास ट्वीटर पर पंकज की मदद के लिए गुहार लगाती मैसैज आई थी। रोजाना ऐसे मैसेज आते रहते थे और मैं मदद के लिए जुट जाती थी, लेकिन यहां पत्रकार की बात थी तो और भी जिम्मेदारी बढ़ गई।
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