जनता को न मोदी, न केजरीवाल और न ही देश से मतलब है, उसे बस मुफ्तखोरी से मतलब है

जी हां, जनता न मोदी होती है और न ही केजरीवाल, जो उसे मुफ्तखोरी सीखा दें, उसे कर देती हैं मालामाल। मुफ्तखोरी एक ऐसी विधा है, जिसे हर कोई अपनाना चाहता हैं, चाहे वह नेता हो या जनता, बस उसे मौका मिलना चाहिए। एक उदाहरण देता हूं, जरा आप इसे समझने की कोशिश करिये, एक नेता चाहे वह आम आदमी पार्टी का केजरीवाल हो या भाजपा का नरेन्द्र मोदी।

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अमित शाह की भाषा देखिये, विरोधियों को चोर, वेश्यावृत्ति करनेवाला तक कह देते हैं

ये हैं भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की भाषा, जो अपने विरोधियों को चोर कहता है, भाड़े के टट्टू कहता है, शराब पीकर वेश्यावृत्ति करनेवाला कहता है, तब ऐसे में भाजपा के सामान्य या छोटे कार्यकर्ता किसी के लिए आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग करते हैं, तो क्या गलत करते हैं या हिंसा करते हैं, तो क्या गलत करते हैं, अब तो गाली देना भाजपा के शिष्टाचार में समा गया हैं।

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“अरे तोड़े से भाई टूटे ना ये मोदी-शाह की जोड़ी”, 39वें साल में भी भाजपा का जादू सर चढ़कर बोल रहा

6  अप्रैल 1980, जब भारतीय जनता पार्टी का जन्म हुआ था तब किसी ने यह सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन भारतीय जनता पार्टी अपने बलबूते पर केन्द्र में सरकार बनायेगी। शुरुआती दौर में जब भी चुनाव होते थे, तो राज्य की विधानसभा चुनावों से लेकर केन्द्र के लिए लोकसभा के चुनावों तक भाजपा को निराशा हाथ लगती थी। कई राज्यों में तो उसे तीसरे स्थान पर उसे संतोष करना पड़ता था और भाजपा को लोग पिछलग्लू पार्टी से ज्यादा कुछ नहीं समझते थे,

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