संघर्षरत पत्रकारों के आगे झूकी बलबीर दत्त की टीम, 1100 में सदस्य और वोटिंग का अधिकार भी
पिछले कई दिनों से अपनी बातों को मनवाने के लिए संघर्ष कर रहे पत्रकारों के समूह को आज आखिर जीत हासिल हो ही गई। रांची प्रेस क्लब का फिलहाल नेतृत्व कर रहे प्रेस क्लब के मनोनीत अध्यक्ष बलबीर दत्त और उनकी टोली को. आखिरकार संघर्ष कर रहे पत्रकारों के आगे झूकना ही पड़ा। पिछले कई दिनों से पत्रकारों का एक बहुत बड़ा वर्ग इस बात के लिए संघर्ष कर रहा था कि प्रेस क्लब का सदस्य बनने के लिए जो राशि 2100 रुपये निर्धारित की गयी है, उसे कम किया जाय।
संघर्ष कर रहे पत्रकारों का कहना था कि अपने राज्य में, अपने जिले में पत्रकारों का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है, जिसे पत्रकारिता के नाम पर कुछ भी हासिल नहीं होता। रांची से प्रकाशित व प्रसारित होनेवाले बड़े – बड़े अखबार व चैनल उनका शोषण करते हैं, और एक भी पैसा नहीं देते हैं, ऐसे हालात में 2100 रुपये की राशि देकर प्रेस क्लब का सदस्य बनना, उनके लिए नामुमकिन है, इसलिए इस राशि को 2100 से घटाकर 1100 रुपये किया जाय, तथा बाद में जब चुनाव के बाद जो नई टीम आयेगी, वह निर्णय करेगी कि राशि 2100 ही रहेगी या 1100 रुपये से ही काम चल जायेगा, पर कोर कमेटी के लोग, हठधर्मिता को अपनाते हुए, झूकने को तैयार ही नहीं थे।
हद तो तब हो गई कि संघर्ष करनेवाले पत्रकारों की बातों को कोर कमेटी में शामिल लोग मानने को तैयार ही नहीं थे, उन्हें लगता था कि कोर कमेटी बन गई, अर्थात् उसे भगवान का वरदान मिल गया, वो जो निर्णय लेगा, सब को मानना पड़ेगा, हद तो तब हो गई कि इसी बीच कोर कमेटी में शामिल कई लोग फतवा जारी करने लगे, जिससे आक्रोश बढ़ता गया।
अंत में 29 अक्टूबर को संघर्ष कर रहे पत्रकारों ने अंतिम निर्णय लिया कि अगर कोर कमेटी के लोग जो हठधर्मिता पर उतर आये हैं, बात नहीं माने तो फिर वे पत्रकारों के आक्रोश को झेलने को तैयार रहे। खुशी की बात यह है कि आज कोर कमेटी के लोगों ने हठधर्मिता छोड़ा और पत्रकारों को 1100 रुपये लेकर सदस्य बहाल करने का निर्णय और उन्हें वोट देने का अधिकार प्रदान कर दिया।
इससे एक बात तो क्लियर हो गया कि फिलहाल मामला शांत हो गया है, पर जिस प्रकार से कोर कमेटी में शामिल कुछ अखबारों और चैनल के संपादकों ने प्रेस क्लब पर अपना कब्जा जमाने के लिए अभी से तिकड़म भिड़ाना शुरु कर दिया है, उससे साफ लगता है कि इस प्रेस क्लब का कबाड़ा बनना तय है, यहां हमेशा अखबारों व चैनलों के विभिन्न नामचीनों के साथ मुठभेड़ अवश्य होगा, क्योंकि कोर कमेटी में शामिल चैनलों-अखबारों के संपादकों के मन के अंदर चल रहा तिकड़म आनेवाले दिनों के लिए कोई शुभ संकेत नहीं दे रहा।