एक बेटा ये है और एक बेटा वो भी हैं
जानते है, जब एक औलाद का जन्म होता है तो एक मां-बाप को कितनी खुशी होती है, वो खुशी उसकी पदोन्नति की होती है। वह मां बनी है, वह बाप बना है, पिता बना है, पालनकर्ता बना है एक बच्चे का, जो बड़ा होकर उसकी तकदीर बनेगा, भविष्य बनेगा, जब वो लहुलूहान होगा तो वह पूछेगा कि पापा आप कैसे हो? मां कैसी हो? और जैसे ही उसके मुख से ये शब्द निकलेंगे, उसके सारे जख्म और पीड़ा समाप्त हो जायेंगे।
भगवान ऐसा बेटा किसी को न दें
भारत बदल रहा है, इतनी तेजी से भारत बदलेगा, वो मां-बाप भी नहीं सोचे होंगे, जिन्होंने अपने बच्चों का भविष्य बनाने के लिए खुद को दांव पर लगा दिया था। जरा देखिये एक खबर है – भारत के टॉप ब्रांडों में शुमार रेमंड के मालिक विजयपत सिंघानिया की, वे इन दिनों एक-एक पैसे को मोहताज है। लोग बताते है कि इनके घर पर कोहराम मचा है। बेटे गौतम सिंघानिया के नाम अपने सारे शेयर के हिस्से कर देना उन्हें भारी पड़ गया, और बेटे ने उन्हें सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया। स्थिति ऐसी है कि उनके ड्राईवर और गाड़ी भी उनके पास नहीं हैं।
दूसरी खबर है मुंबई की, जहां एक ऐसा बेटा है, जो मां के साथ रहना तो दूर, उससे बात करना तक पसंद नहीं करता था। मां मर गई, मां की एक साल तक लाश सड़ती रही, मां का शव सूख कर कंकाल में परिवर्तित हो गया, और तब जाकर बेटा मां से मिलने आया। ये बेटे है भारतीय मूल के सॉफ्टवेयर इंजीनियर ऋतुराज साहनी, जो पिछले करीब 20 वर्षों से देश से दूर अमेरिका में रहते है। पिता की मौत 4 साल पहले हो गयी थी, और अकेलेपन की वजह से मां ने दम तोड़ दिया। ऐसे हैं आज के बच्चे। ऋतुराज की मां ने उसे फोन कर कहा था कुछ साल पहले कि, हो सके तो ओल्ड एज होम में ही हमें रख दो ताकि अकेलापन दूर हो सके, पर बेटे को फुर्सत कहां? मां मर गई, सूख कर कंकाल बन गई, और बेटे के नाम पर जाते-जाते 6 करोड़ की दो फ्लैट छोड़ गई, क्या करें मां है ना, वो बेटे को जाते-जाते भी कुछ देकर ही गई।
बेटा हो तो ऐसा
और अब दूसरी ओर झारखण्ड में देखिये एक बेटा है – मनोज कुमार सिंह। कभी झारखण्ड के प्रमुख अभियंता रहे सी के सिंह के बेटे। सी के सिंह आज दुनिया में नही है, पर उनके बेटे अपने पिता की दी हुई विरासत और संस्कार को संजोए हुए है। समस्तीपुर के एक गांव में जहा उनका पैतृक परिवार रहता है, रांची से सपरिवार उस गांव में पहुंचते है। उस गांव में अपने पिता सी के सिंह के नाम पर सेवा कार्य चलाते है। स्वयं जब तक सी के सिंह जीवित रहे, वे अपनी पत्नी के नाम पर वीणा फाउंडेशन चलाते थे और उस वीणा फाउंडेशन के नाम पर सेवा कार्य करते रहे और अब बेटों ने उस कार्य को संभाल लिया है। वे नहीं चाहते कि उनके रहते, उनके पिता का नाम धूमिल हो, वे चाहते है कि जब तक वे जीवित रहे, अपने पिता के लिए, पिता के नाम से कुछ करते रहे। थोड़ी ही दिन पहले पता चला कि मनोज कुमार सिंह ने अपने पिता के नाम पर जलालपुर बोथनाला तेलगामा दशराहा पथ को डा. सी के सिंह पथ के नाम से जनवाने का कार्य किया है, जो बताता है कि एक पुत्र अपने पिता के यश व सम्मान के लिए क्या कर रहे है? सचमुच बेटा हो तो ऐसा, न तो न हो। यहीं नहीं मनोज कुमार सिंह जहां भी रहे, अपने यश व कीर्ति के लिए जाने जाते है, वे झारखण्ड स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन से भी जुड़े रहे है, पर किसी की हिम्मत नहीं हुई कि उन्हें विवादों में ले आये। सचमुच बेटा भी भगवान अनेक प्रकार का पैदा करता है, एक जीते जी मां-बाप को मार डालता है और दूसरा मरने के बाद भी अपने माता-पिता के यश को फैलाने के लिए जब तक जीवित रहता है, चिंतित रहता है।